प्रतापगढ़ — चिलचिलाती गर्मी का मौसम आ गया है। गर्मी से निजात पाने मनुष्य हो या जानवर सब को पानी की आवश्यकता होती है।
पानी की बात हो तो कुआं की बात न हो तो बात अधूरी रह जाती है। कभी हैसियत की पहचान रहा कुआं आज अपना अस्तित्व खो चुका है। कही किसी गाँव या निर्जन में भी नजर आ जाता है आज भी कुंआ।
कभी जमाना था की कुआं ही प्यास बुझाने और सिंचाई का साधन था लेकिन समय के साथ गुजरे जमाने की बात होता जा रहा है। राजे महाराजे जमींदार रास्तो में भी कुआं बनवाते थे ताकि इसका एकत्रि हुआ पानी राहगीरों और जानवरों को प्यास बुझाने का काम आता थे। इतना ही नही लोग अपनी हैसियत के हिसाब छोटा बड़ा कुआं बनवाते थे और उसी के हिसाब से रुतबा होता था। गरीबो का सहारा कच्ची दीवार की कुई होती थी कुओं पर रस्सी और बाल्टी की भी व्यवस्था रहती थी।
लेकिन आज कुए खत्म होते जा रहे है लोग कूड़ा कचरा और मिटी डालकर उसके वजूद को खत्म कर रहे है।इतना ही नही शहरों के विस्तार के चलते कुआं पर रिहायसी मकान भी खड़े हो चुके है जो कुंए बचे है सफाई के अभाव में उनका पानी पीने लायक नही है। आप देख सकते ये कुआं जो शहर के रोडवेज बस स्टॉप के सामने है कभी पूरे इलाके की प्यास बुझाता था लेकिन आज खुद प्यासा है। तो वही जिला पंचायत के गेट के भीतर का कुआं अपना अस्तित्व खो चुका है। इसमें कचरा भरकर ऊपर से मिट्टी से ढक दिया गया है अब इसके अवशेष मात्र बचे है।
(रिपोर्ट-मनोज त्रिपाठी,प्रतापगढ़)