गुजरात के मोरबी (morbi) में झूला पुल हादसे में सोमवार सुबह तक 141 लोगों की मौत की पुष्टि की गई है। जबकि 177 लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है। रविवार शाम करीब साढ़े 6 बजे पुल के टूटकर गिरने के बाद मच्छु नदी से शव निकाले जा रहे हैं। मरने वालों में 45 बच्चे शामिल हैं। इस हादसे में सबसे ज्यादा बच्चों की मौत हुई है। चौंकाने वाली बात ये है कि ब्रिज 7 महीने से बंद था। इसे मरम्मत के बाद 5 दिन पहले ही आम जनता के लिए खोला गया था। इस हादसे के बाद प्रशासन और मोरबी ब्रिज का मैनेजमेंट देख रही Oreva कंपनी सवालों के घेरे में आ गई है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर ये हादसा किसकी लापरवाही के चलते हुआ।
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वहीं मोरबी के झूलते पुल को झुकाने में क्षमता से अधिक लोगों का प्रवेश देना माना जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार 100 के बजाय करीब 500 लोग हादसे के वक्त ब्रिज पर मौजूद थे। ब्रिज को झूला के समान झुलाने की कोशिश से ब्रिज में अत्यधिक कंपन होने से यह वजन बर्दाश्त नहीं कर पाया और दो भाग में विभक्त हो गया।
राज्य के सड़क और भवन निर्माण मंत्री जगदीश पंचाल ने बताया कि ब्रिज नगर पालिका के अधीन है। इस पर 100 से अधिक लोगों की मौजूदगी के कारण इसका टूटना प्रतीत हो रहा है। ब्रिज पर 400 से 500 लोगों को टिकट लेकर प्रवेश दिया गया था। बताया गया कि टिकट की दर 20 रुपए थे। अधिक रुपए के लालच में संचालकों ने ब्रिज पर क्षमता से अधिक लोगों को जाने दिया। एक व्यक्ति का औसत वजन यदि 60 किलो भी माना जाए तो ब्रिज पर करीब 400 से 500 लोगों के हिसाब से यह 30 हजार किलो यानी 30 टन हो जाता है। इसकी वजह से यह ब्रिज धराशायी हो गया।
रखरखाव के लिए ट्रस्ट को सौंपी गई थी जिम्मेदारी
दरअसल मोरबी ( morbi ) के मच्छु नदी पर झूलते पुल का पांच दिन पहले ही मरम्मत के बाद आम जनता के लिए खोला गया था। ऐतिहासिक महत्व के कारण झूलते पुल का संरक्षण के साथ बेहतर रखरखाव के लिए ओरेवा ट्रस्ट बनाकर इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई थी। ट्रस्ट को आगामी 15 साल तक पुल की देखरेख और मरम्मत का कार्य दिया गया था। ट्रस्ट ने एक निजी कंपनी को मरम्मत कार्य के लिए दिया था। यह पुल आजादी के पहले का है, जो करीब 140 साल पुराना है। इस ब्रिज को यूरोपियन शैली का बेहतर स्थापत्य कला का नमूना भी माना जाता है।
केबल ब्रिज 140 साल से ज्यादा पुराना बताया जा रहा है। यह ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था। यह लंदन की महारानी विक्टोरिया ने नाइट कमांड ऑफ दी स्टेट ऑफ इंडिया का खिताब जिन्हे दिया था, उन मोरबी के महराजा वाघजी ठाकोर ने इसे बनवाया था। इस पुल की लंबाई 765 फीट और चौड़ाई 4.6 फीट है। वर्ष 1887 में इसका निर्माण किया गया था। इसकी ऊंचाई जमीन से करीब 60 फीट है। यह पुल मच्छु नदी पर दरबारगढ पैलेस और लाखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज को जोड़ता है।
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