हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। नवरात्र के पूरे नौ दिन मां दुर्गा के अलग अलग स्वरूपों की विधि-विधान से दर्शन, पूजा की जाती है। नवरात्र के समय मां दुर्गा के भक्त लाखों की संख्या में देश के कोनें कोने में मौजूद शक्तिपीठों पर जाकर दर्शन पूजा करते हैं। ऐसे ही भारत के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक विंध्याचल में स्थित मां विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए भक्त दूर दूर से आते हैं। बता दें कि मां विंध्यवासिनी का धाम प्रयागराज और काशी के मध्य विन्ध्य पर्वत श्रृंखला मिर्जापुर जिले में स्थित है।
दर्शन मात्र से पूर्ण होती है मनोकामनाएं :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह विश्व का एकमात्र स्थान है, जहां पर तीनों देवियां एक साथ मौजूद है। यहां पर आने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और वह खाली हांथ नही जाते। यहां पर विराजमान देवी के तीनों स्वरूप (महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती) ईशान कोण पर हैं। यहां महालक्ष्मी के रूप में विंध्यवासिनी, महाकाली के रूप में काली खोह और महासरस्वती के रूप में मां अष्टभुजा विराजमान हैं। इस जगह त्रिकोण यंत्र (महाशक्तियों का त्रिकोण) भी कहा जाता है। भक्त यहां नंगे पांव मां विंध्यवासिनी, मां महाकाली व मां अष्टभुजी के दर्शन करने के लिए त्रिकोण यात्रा भी करते हैं।
त्रिकोण यात्रा से मिलता है दर्शन का फल:
विंध्याचल में रहने वाला अध्यात्मिक धर्मगुरुओं के अनुसार मां विंध्यवासिनी के धाम में त्रिकोण अपने आप में विशेष महत्व रखता है। इस धाम में आने व त्रिकोण परिक्रमा करने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं। विंध्याचल में दो त्रिकोण है, एक सूक्ष्म और दूसरा वृहद त्रिकोण। साथ ही इसे इच्छा, क्रिया और ज्ञान का त्रिकोण कहा जाता है। उन्होंने बताया कि मां विंध्यवासिनी के दर्शनोपरांत त्रिकोण यात्रा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाता है। वही विंध्याचल ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं।
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