उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो मायावती की मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही हैं। सूबे की योगी सरकार ने नियंत्रक और महालेखाकार (कैग) की रिपोर्ट के आधार पर उन पर कार्रवाई करने का फैसला किया है।
सीएजी की इस रिपोर्ट ने 2007 से 2012 के बीच मायावती के नेतृत्व वाली सरकार के शासन की विसंगतियों का खुलासा किया है।
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बता दें कि प्रदेश सरकार ने मायावती पर अचानक कार्रवाई करने का फैसला ऐसे समय लिया है, जब वह पिछले कुछ दिनों से योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं।
योगी पर लगातार हमला कर रही थी माया…
दरअसल बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रदेश में लगातार बढ़ अपराध का मामला हो या भाजपा सरकार में आए दिन सामने आ रहे दलित उत्पीड़न का मामला हो, या फिर प्रदेश की योजनाओं में भ्रष्टाचार उजागर होने का मामला हो, मायावती लगातार इन मुद्दों पर पिछले कुछ दिनों से योगी सरकार के खिलाफ हमलावर हैं।
सीएजी रिपोर्ट के आधार पर होगी कार्रवाई
ऐसे में अब योगी सरकार ने अचानक बीएसपी सुप्रीमो के खिलाफ सीएजी रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई शुरू करने का फैसला लिया है। प्रदेश सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि तत्कालीन मायावती सरकार ने गाजियाबाद में कृषि भूमि को आवास भूमि में बदला और इसके लिए प्रॉपर्टी डेवलेपर्स से अपेक्षित रूपांतरण शुल्क नहीं लिया।
गौरतलब है कि सरकार के अनुसार, तत्कालीन मायावती सरकार के फैसले से गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) को 572.48 करोड़ रुपये का वित्तीय नुकसान हुआ और दिल्ली मास्टर प्लान 2021 का उल्लंघन करते हुए चुनिंदा प्रॉपर्टी डेवलपर्स को ही यह लाभ दिया गया।
सीएजी रिपोर्ट में उजागर हुई माया सरकार की खामिया
रिपोर्ट में कहा गया है कि जीडीए ने दिल्ली मास्टर प्लान 2021 में हाई-टेक टाउनशिप के रूप में चिन्हित 3,702.97 एकड़ सहित कुल 4,772.19 एकड़ क्षेत्र के लिए प्रॉपर्टी डेवलपर्स के लेआउट प्लान्स को मंजूरी दी थी।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि मानदंडों के खिलाफ जाकर कृषि भूमि को उप्पल चड्ढा हाई-टेक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड को आवंटित किया गया, क्योंकि इसका भूमि उपयोग बदलकर आवासीय कर दिया गया था और इसके लिए कोई रूपांतरण शुल्क नहीं लिया गया था।
ये फर्म थे शामिल…
इस फर्म में उप्पल चड्ढा हाई-टेक डेवलपर्स और सन सिटी हाई-टेक इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड जैसे दो डेवलपर्स शामिल हैं। कैग ने कहा है कि तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने 23 अप्रैल, 2010 को एक आदेश जारी किया था, जिसके बाद ये वित्तीय अनियमितताएं हुईं।
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