बाबू गेंदा सिंह महान विचारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, किसानों के हितैषी होने के साथ एक सच्चे लोकसेवक थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अपने लिए नहीं बल्कि दूसरे लोगों की भलाई में समर्पित कर दिया। मूल्यों की राजनीति में उनका विश्वास था। यही कारण है कि आज भी उनका जीवन हमारे बीच प्रासंगिक है। ऐसे महान विभूति के चरित्र से हमें प्रेरणा लेने की जरूरत है।
गेंदा सिंह पूर्वी उत्तर प्रदेश के अविभाजित देवरिया जिले के गन्ना किसानों के संघर्षों के सम्मान के प्रतीक हैं। वह अपने समय के चर्चित किसान नेता थे। वर्तमान पीढ़ी के बहुत कम लोगों को मालूम है कि गेंदा सिंह मार्च 1941 से दिसम्बर 1945 तक राजनैतिक कैदी के रूप मे जेल में रहे, इसी दौरान उन्हें आचार्य नरेंद्र देव एवं रफी मुहम्मद किदबई का सानिध्य भी मिला।
गेंदा सिंह का जन्म दिनांक 13 नवंबर 1908 को देवरिया (वर्तमान में कुशीनगर) जिले के ग्राम दुमही पोस्ट बरवा राजा पाकड़ तमकुही में एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। गेंदा सिंह के पिताजी का नाम मदन गोपाल नारायण सिंह एवं माताजी का नाम सरस्वती देवी था। 15 नवम्बर 1977 को देश ने अपना एक महान निष्ठावान एवं समर्पित प्रथम किसान नेता खो दिया।
गेंदा सिंह 1921 से 1948 तक कांग्रेस से जुड़े रहे एवं बाद में 1948 से 1964 तक सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में रहे। 1964 में उन्होने कांग्रेस में वापसी की एवं उसके बाद आजीवन कांग्रेस में रहे। गेंदा सिंह 1949 से 1952 तक उत्तर प्रदेश सोशलिस्ट पार्टी के क्षेत्रीय सचिव रहे।
1952 से 1971 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गेंदा सिंह 1952 में पहली बार सोशलिस्ट पार्टी से पडरौना ईस्ट के विधायक चुने गये। लोकबंधु राजनारायण के 1952 से 1955 तक विपक्ष के नेता के रूप में रहने के बाद गेंदा बाबू 1955 से 1957 तक वह नेता विपक्ष के दायित्व पर रहे। 1967 में वे कांग्रेस पार्टी से विधायक चुने गये।
अप्रैल 1965 से मार्च, 1967 तक कृषि एवं पशुपालन विभाग के मंत्री, 1967 में लोकनिर्माण विभाग एवं खाद्य रसद मंत्री एवं 1970 में सूचना मंत्री उत्तर प्रदेश सरकार रहे। मार्च 1967 में गेंदा सिंह कृषि एवं वन का अध्ययन करने के लिए यात्रा पर भी जर्मनी गये।
गेंदा सिंह पहली, दूसरी, तीसरी एवं चौथी विधानसभा के सदस्य एवं पड़रौना लोकसभा क्षेत्र के पहले सांसद थे।गेंदा सिंह के चुनावी नतीजों के कुछ आंकड़े यहां आपके सामने हैं।
पडरौना ईस्ट विधानसभा क्षेत्र
1952
गेंदा सिंह सोशलिस्ट पार्टी 13906
सिंहासन राय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 5466
1957
गेंदा सिंह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी 19586
रामलाल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 9476
1962
गेंदा सिंह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी 17793
राजमंगल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 16664
1967
सेवरही विधानसभा क्षेत्र
गेंदा सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 28558
मालती निर्दल 18094
1971
पडरौना लोकसभा क्षेत्र (कुशीनगर)
गेंदा सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 172153
सीपीएन सिंह बीकेडी 22271
काशीनाथ पांडेय एनसीओ 20352
वर्ष 1971 में हुए लोकसभा के पांचवें आम चुनाव में देवरिया पूर्वी के बाद परिवर्तित हुए हाटा लोकसभा क्षेत्र का नाम तब्दील होकर पडरौना लोकसभा क्षेत्र हो गया। चर्चित किसान नेता गेंदा सिंह अस्तित्व में आए पडरौना लोकसभा से पहले सांसद चुने गए थे। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर बीकेडी के सीपीएन सिंह को 1,49,882 वोटों से पराजित किया था। वहीं लगातार तीन बार जीत का परचम लहराने वाले काशीनाथ पांडेय को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। काशीनाथ कांग्रेस अर्स प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में थे।
गेंदा सिंह का संपूर्ण जीवन किसानों की खुशहाली और तरक्की को समर्पित था। किसान और गांव की जिंदगी कितनी अधिक बेहतर बन सकती थी। इसके लिए उन्होंने सड़क से सदन तक संघर्ष किया। लोकहित में काम करने वाले लोग युगों-युगों तक याद किए जाते हैं।
“बाबू गेंदा सिंह किसानों के मसीहा थे। उनकी सोच थी कि पूर्वांचल का हर किसान खुशहाल रहे। परिणाम गंडक नहर प्रणाली, गन्ना शोध संस्थान, मसाला फार्म, आलू फार्म, रेशम फार्म, कृषि विज्ञान केंद्र आज जनपद के किसानों को समृद्ध कर रहे हैं। गेंदा सिंह ने खेती किसानी के स्वरूप में व्यापक परिवर्तन करते हुए सेवरही इलाके में एशिया स्तर का शोध संस्थान, बकरी फार्म, सब्जी अनुसंधान के साथ नहरों का जाल बिछाया। सेवरही में गन्ना अनुसंधान केंद्र, रेशम फार्म, सब्जी व मसाला फार्म, एपी तटबंध, नहर उन्हीं की देन हैं। वह जीवन पर्यंत गन्ना किसानों के हित में संघर्ष किए।”
वर्तमान समय में लोग नेता बनकर स्वहित में कार्य करने में व्यस्त रहते हैं उन्हें गेंदा बाबू जैसे नेताओं से सीख लेने की जरूरत है।
दिव्येन्दु राय
(स्वतन्त्र टिप्पणीकार)
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