लखनऊ — जब भी पहलवानी शब्द आता है, तो केवल पुरूषों का वर्चस्व ही नजर आता है। लेकिन,अब महिलाएं भी पहलवानी में अपना दमखम दिखाने लगी है। अगर कहा जाए कि गांव की घरेलू महिलाएं भी इसमें हाथ आजमाती है तो थोड़ा आश्चर्य तो होगा ही। कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है गोसाईगंज थाना क्षेत्र के अहमामऊ में महिलाओं के दंगल आयोजन में।
बता दें कि अहमामऊ में नागपंचमी के दूसरे दिन लगने वाले मेले में महिलाओं के दंगल की प्रथा 200 साल पुरानी है। जहां गांव की महिलाएं देवी पूजन के गीत गाने के बाद मैदान में दंगल के लिए एक दूसरे को ललकारती हुई उतरती हैं। इस कुश्ती को ‘हापा’ कहा जाता है। हापा के दौरान महिला पुलिस बल भी तैनात रहता है। यहाँ पुरूषों का आना सख्त मना है।
गुरुवार को एक बार फिर अहमामऊ में एेतिहासिक अखाडा सजाया गया और महिलाए मैदान पर उतरने लगी। दंगल यानि ‘हापा’ की तैयारी पूरी होते ही सालों पुरानी इस परम्परा की शुरुआत गांव की सबसे बुजुर्ग महिला द्वारा किया जाता है। इस दौरान महिला पहलवान विनय कुमारी मुकाबले के लिए ललकार लगाती हैं, और सुन्दरा आ धमकती है। फिर शुरू होता है दंगल। विनय कुमारी मौका देख सुन्दरा को जोरदार पटखनी देती हुई उसकी छाती पर चढ़कर बैठ जाती है।फिर क्या सुन्दरा चारों खाने चित्त और जीत विनय कुमारी की होती है।
इसके बाद ये सिलसिला चल निकलता है, कुसमा और श्रीदेवी के बीच,नैकिना और विजय कुमार के बीच,रामकली और कुसमा के बीच मुकाबला हुआ और एक बार फिर एकतरफा मुकाबले में विनय कुमारी ने अपने से आधी उम्र की पहलवान मिथिलेशा को जबरदस्त पटखनी दी। दंगल जीतने वाली महिलाओं को रुपयों के साथ साड़ी भी भेंट की जाती है।
महिलाएं के हाथों में होती है आयोजन की बागडोर
दरअसल नवाब की बेगम नूरजहां व कमर जहां ने महिला कुश्ती का अनूठा आयोजन कराया था। जिसे ‘हापा’ नाम दिया गया। वहीं विनय कुमारी बताती हैं कि यह परम्परा 200 साल पुरानी है जिसमें 10 वर्ष से लेकर 70 -75 साल तक की महिला हिस्सा लेती है। इस कार्यक्रम का आयोजन महिलाएं स्वयं करती हैं। इसमें किसी और की मदद नहीं ली जाती है। इसमें देवी पूजा के लिए एक टोकरी में फल, बताशे, खिलौने और श्रृंगार का सामान रखा होता है। रीछ देवी, गूंगे देवी और दुर्गा की पूजा के साथ भुईया देवी की जयकार के साथ होती है। इसके बाद महिलाएं ढोलक की थाप के साथ गाने गाकर मनोरंजन करती है।
पुरुषों को प्रवेश नहीं
एक ओर जहां महिलाए मैदान पर उतरती है वहीं हापा में पुरूषों का आना पूरी तरह से वर्जित है। यहां तक कि अगर कोई पुरूष अपनी घर की छत पर भी खड़ा होता है, तो उसे भी अंदर जाने के लिए कहा जाता है। ताकि कोई इसे देख ना सके। महिलाओं के साथ केवल छोटे बच्चों को ही आने की अनुमति होती है। इसके अलावा इनकी सुरक्षा के लिए महिला पुलिस कर्मियों की तैनाती भी की जाती है।
(रिपोर्ट-सुजीत शर्मा)