फतेहपुर–कोरोना महामारी के चलते लगाए गए लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान आम तौर पर ये शिकायत है कि मुस्लिम नौजवान ख़ास तौर पर लॉक डाउन के नियमो का पालन नही कर रहे है जिसकी वजह से पुलिस द्वारा सख़्ती करने की खबरें भी सामने आ रही हैं।
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लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान बरेली मुरादाबाद जैसे शहरों में तो हिंसक घटनाओं की भी खबरें आई और पुलिस प्रशासन को सख्त कार्येवाहि करनी पड़ी है। अभी 7 दिन बाद रमज़ान का महीना शुरू होने वाला है जिसमे रोज़े रखे जाते हैं और तरावीह की नमाज़ पढ़ी जाती है। हालांकि सऊदी अरब समेत कई मुस्लिम देशों के मुफ़्तियों ने इस पर अपने फ़तवे भी जारी किए हैं कि मुसलमान अपने घरों में रहकर ही नमाज़ और तरावीह का एहतमाम करें और मस्जिदों में नमाज़ न पढ़ें। दारूल उलूम देवबंद ने भी इस पर अपनी रज़ामन्दी ज़ाहिर की है।फैसल खान ने कहा कि इस मामले पर मेरी अपनी ज़ाती सोच ये है कि लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान हर शहर और कस्बों के मुस्लिम धर्मगुरु प्रशासन से मशविरा करके बाकायदा रोज़ाना मस्जिदों से अज़ान के बाद कम से कम 5 मिनट तक शरीयत के हवाले से लोगों को समझाएं और उनको बताएं कि हमको इन हालात में अपना किया रद्दो अमल रखना है कैसे लॉक डाउन पर अमल करना है। मुझे ऐसा लगता है कि मुस्लिम लीडर तो अपना यक़ीन खत्म ही कर चुके हैं मगर मुस्लिम समाज अभी भी अपने उलेमा पर यक़ीन रखता है और अगर उलेमा रोज़ाना मसजिदों से माइक के ज़रिए नौजवानों को ये समझाएं तो वो ज़्यादा बेहतर समझ भी सकते हैं और अमल भी ज़रूर करेंगे।
लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान जिन मस्जिदों में प्रशासन ने 4 या 5 लोगों को 5 वक़्त की नमाज़ अदा करने की इजाज़त दी हुई है वहां के ज़िम्मेदार उन 4 लोगों की तरतीब बनाएं और उनको ज़िम्मेदारी सौंपें की किसी भी हाल में वहां पर एक भी आदमी फालतू आकर कानून की ख़िलाफ़ वरज़ी न करें।मुल्क में फैली महामारी के बीच अपने नौजवानों को कानून के बारे में समझाना उसपर अमल करवाना हम सब के साथ साथ उलेमा की भी ज़िम्मेदारी है जिसको वो बख़ूबी निभा भी रहे हैं।
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मुझे ऐसा लगता है कि अगर हर मस्जिद से रोज़ाना माइक पर नौजवानों को शरीयत के हवाले से ये सब समझाया जाये तो ये तदबीर कमाल कर सकती है और नौजवानों को कोरोना से बचाव लॉक डाउन का पालन और घरों में रहकर इबादत करने के बारे में बेहतर समझाया जा सकता है।