पटना : भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. बड़ी बात यह है कि 30 जनवरी को भारत में कोरोना वायरस का पहला केस मिला था. इसके बाद लगातार बढ़ते संक्रमण के बीच जनता कर्फ्यू लगाया गया और उसके बाद 21 दिनों का lockdown.
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15 अप्रैल को lockdown खत्म हो रहा है. उम्मीद जतायी जा रही है कि जल्द ही lockdown पर सरकार बड़ा फैसला लेगी. इसी बीच एक रिपोर्ट सामने आयी है, जिससे पता चलता है कि लॉकडाउन के कारण भारत में कोरोना वायरस संक्रमण से हालात बेकाबू होने से बच गये.
दरअसल, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट में जिक्र है कि ‘अगर भारत में लॉकडाउन की घोषणा नहीं की जाती तो 15 अप्रैल तक देश में कुल कोरोना संक्रमितों की संख्या 8 लाख 20 हजार हो गयी होती. कोरोना संक्रमित एक व्यक्ति 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है. जबकि, lockdown के चलते उसकी क्षमता महज 2.5 लोगों को संक्रमित करने तक रह जाती है.’
मेडिकल क्षेत्र में काम करने वाली इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की रिपोर्ट में पता चलता है कि भारत में लॉकडाउन का ऐलान नहीं होता तो हालात बेकाबू हो जाते. लॉकडाउन नहीं होने की सूरत में देश में 8 लाख 20 हजार लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो जाते. भारत की हालत कमोबेश इटली के जैसी हो जाती. आईसीएमआर का अनुमान R0-2.5 के सिद्धांत पर आधारित है. इसके अनुसार अगर लॉकडाउन नहीं किया जाता है तो कोरोना से प्रभावित एक व्यक्ति 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है. लॉकडाउन लागू होने के बाद उसकी क्षमता महज 2.5 लोगों को संक्रमित करने तक ही सीमित रहती है.
जबकि, एक अन्य रिपोर्ट में आईसीएमआर ने बताया है कि देश के अलग-अलग राज्यों में रैंडम सैंपल टेस्ट किये जा रहे हैं. आंकड़ों में देश के कुछ इलाके में कम्युनिटी ट्रांसमिशन के संकेत मिले हैं. हालांकि, इसके पहले इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने ऐसी किसी भी संभावना से इनकार किया था. जबकि, आईसीएमआर ने रिपोर्ट में सरकार से गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और केरल जैसे राज्यों पर अधिक ध्यान की बात कही है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 30 जनवरी को सामने आया था. जबकि, केंद्र सरकार ने 17 जनवरी को ही कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए एयरपोर्ट पर निगरानी और चेकिंग जैसे जरूरी कदम उठाये थे. भारत में बाहर से आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग कोरोना संक्रमण के पहला केस आने से पहले ही शुरू कर दी गयी थी. जबकि इटली ने 25 दिनों बाद जबकि स्पेन ने 39 दिनों बाद स्क्रीनिंग शुरू की थी.