एटा– जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर जिला एटा की एक तहसील जलेसर है ; जहाँ कस्बे में ही एक पसीना वाले हनुमान जी का मंदिर है। जहाँ हनुमान जी की प्रतिमा को आपातकाल की स्थित में पसीना आता है।
इतना ही नहीं हनुमान जी के बदन पर नसे भी चमकती है। इसलिए श्रद्धालु इन्हे पसीना वाले हनुमान जी के नाम से पुकारते है और इन्हे नस वाले हनुमान जी के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि ये मंदिर करीब पांच सौ वर्ष पुराना है। पहले यहाँ बांके बिहारी जी का मंदिर था। उसके बाद यहाँ राम जी के परम भक्त हनुमान जी प्रतिमा की स्थापना हुयी।
बताया जाता है कि संवत 1206 में करौली रियासत के परिवार ने यहाँ आकर अवागढ़ रियासत की स्थापना की थी। अवागढ़ रियासत के 27 वें राजा बलवंत सिंह के पितामह राजा पृथ्वी सिंह वर्ष 1798 ई. में अपने परिवार की रियासत करौली घूमने गए थे। मान्यता है कि वहां उन्हें सोते समय स्वप्न में हनुमान जी के दर्शन हुए और स्वप्न में हनुमान जी ने स्थान बताकर खुदाई करा अपने साथ ले जाने को कहा। सुबह जब राजा पृथ्वी सिंह ने करौली नरेश को स्वप्न बताया तो उन्होंने उक्त स्थान पर खुदाई कराई तो वास्तव में ही आदमकद हनुमान जी की प्रतिमा निकली। राजा पृथ्वी सिंह प्रतिमा को ऊंटगाड़ी में रखकर अवागढ़ जा रहे थे। तभी जलेसर में अचानक ऊंटगाड़ी रूक गई। फिर कई ऊंट, घोडे़, हाथी लगाकर गाड़ी खींचने का प्रयास किया। किन्तु गाड़ी टस से मस न हुई। अवागढ़ नरेश ने निकट के ही प्राचीन हनुमान मंदिर में रात्रि विश्राम किया। रात्रि में मंदिर के महंत बाबा ब्रजवासी दास सन्यासी को हनुमान जी ने स्वप्न देकर मंदिर में ही स्थापित करने का आदेश दिया। सुबह बाबा सन्यासी ने स्वप्न की बात महाराज अवागढ़ को बताई। महाराज की सहमति के बाद बाबा ब्रजवासीदास अकेले ही इस चमत्कारी प्रतिमा को मंदिर के अन्दर उठा ले गए तथा मूर्ति स्थापित की।
बताया जाता है कि इस मंदिर में लोगो की बहुत ही आस्था है। जो भी भक्त यहाँ आकर अपनी मनोकामना मांग ता तो हनुमान जी उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण करते है। यहाँ माह के प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को हजारो की संख्या में श्रद्धालु आते है और अपनी मनोकामना लेकर यहाँ से जाते है। लोगो की माने तो यहाँ आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण होती है। जब भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है तो वह भगवान राम के परम भक्त हनुमान की दर्शन करने अवश्य आते है। बताया जाता है कि जब किसी व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण होती है तो मंदिर घंटा चढ़ाया जाता है।
खलील गंज था पहले इस स्थान का नाम :
बताया जाता है कि जहाँ ये मंदिर स्थित है उस जगह का नाम खलील गंज था ; लेकिन जब यहाँ भगवान राम जी के परम भक्त हनुमान जी की प्रतिमा की स्थापना हुई तब से इस मोहल्ले को महावीर गंज के नाम से जाना जाता है। क्योंकी जब अवागढ़ के राजा बलवंत सिंह ने इस मंदिर में भगवान महवीर (हनुमान जी ) की प्रतिमा की स्थापना करायी गयी तभी से उनके आदेश पर इस जगह का नाम महवीर गंज रख्ग दिया गया । तभी से आज तक इस जगह को महावीर गंज के नाम से जाना जाता है।
प्रतिमा पर नहीं चढ़ाते चोला:
एक ओर जहां हनुमान जी की प्रतिमा को ¨सदूर का चोला चढ़ाना शुभ माना जाता है। वहीं पसीने वाले हनुमान की प्रतिमा को चोला नहीं चढ़ाया जाता। मंदिर में चोला हनुमान जी की प्राचीन प्रतिमा को ही चढ़ाया जाता है।
1935 में आया था पसीना:
बतया जाता है कि हनुमान प्रतिमा को वर्ष 1935 में प्रथम बार पसीना आया था। उस समय भारी अकाल पड़ा था। जिससे किसानो को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा था और पुरे क्षेत्र में हाहाकार मच गया था और क्षेत्र के किसान भुखमरी के कगार पर आ गए थे।
(रिपोर्ट- आर. बी. द्विवेदी, एटा)