फर्रुखाबाद– हिंदुस्तान की गोद हमेशा सूफियों , बलियों और ऋषि-मुनियों से भरी रही है | यही वजह है कि हिन्दुस्तानी तहजीब का रंग दुनिया से जुदा है | हिंदुस्तान तहजीब का कुछ ऐसा ही नजारा आज फर्रुखाबाद के शेखपुर में हजरत मखदुर लंगर जहाँ की मजार पर देखने को मिला |
यहाँ सैकड़ो सालों से इस्लामी कलेंडर की 12 जमादिउल से 18 जमादिउल तक हजरत मखदुर लंगर जहाँ का उर्स व् मेला मानाने का रिवाज चला आ रहा है | इसी कड़ी में शेखपुर स्थित हजरत मखदूर लंगर जहाँ की मजार पर चल रहा 692 वां उर्स रवाती अंदाज में आज सम्पन्न हुआ | इस अवसर पर देश के कोने-कोने से आये बाबा के मुरीद शामिल हुए | खास बात यह थी कि हिन्दू हो या मुस्लिम हर धर्म के मानने वाले इस आयोजन में बढ़ चढ़कर शरीक हुए | इस उर्स व मेले को छड़ियो वाला मेला भी कहा जाता है |
दरअसल इस उर्स के आखिरी दिन सज्जादानशीन मजार से चार किलोमीटर दूर स्थित चिल्लाहगार से पालकी में सवार होकर छडियो की में ले चल पीर की सदाओं के साथ दरगाह पर तशरीफ लाते है | यह रस्म उतनी ही पुरानी है जितनी की मेले की तारीख। साथ ही मान्यता है कि सज्जादानशीन इस दौरान जो विशेष वस्त्र पहनते है , वह खरका शरीफ हैं | इसके दर्शनों के लिए दूर दूर से लोग उर्स में आते है |
प्रसाद के रूप में लड्डू बांटे गये। वहीं लड्डुओं की परम्परा के बारे में बताया जाता है कि बाबा को दफनाने के समय गुड़ बांटी गयी थी। उसी के परिप्रेक्ष्य में इसे बदल कर बेसन के लड्डुओं को वितरित करने की परम्परा पड़ गयी। अब लोग दूर दूर से शेखपुर के लड्डू खरीदकर ले जाते हैं और बड़े ही चाव से उनका लुत्फ उठाते हैं। वहीं लोगों की दरगाह पर मन्नत पूरी होने पर मीठी रोटी चढ़ाते हैं।
(रिपोर्ट- दिलीप कटियार, फर्रुखाबाद )