न्यूज डेस्क — केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रसव के दौरान महिलाओं की परेशानी को देखते हुए बनाए गया तीन माह की जगह छह माह के मातृत्व अवकाश का कानून अब कामकाजी महिलाओं के खिलाफ जाता दिखाई दे रहा है।
महिलाओं को वर्कफोर्स में बनाए रखने के लिए कानून में हुए इस बदलाव ने भारत को कनाडा और नॉर्वे जैसे प्रगतिशील देशों की कतार में खड़ा कर दिया था। हालांकि एक नए सर्वे के मुताबिक, महिलाओं को इस नियम से फायदा कम और नुकसान ज्यादा हो रहा है।
टीमलीज़ सर्विसेज़ के मुताबिक, भारत में इस कानून की वजह से स्टार्टअप्स और छोटे बिजनेस में महिलाओं की जगह नहीं मिल पा रही है। सर्वे के मुताबिक, इस कानून की वजह से फाइनेंशियल ईयर अप्रैल 2018 से मार्च 2019 तक 10 सेक्टर्स में 11 लाख से 18 लाख महिलाओं की नौकरी जा सकती है।
दरअसल मातृत्व प्रसूति लाभ अधिनियम (संशोधित) के तहत कामकाजी महिलाओं को 12 हफ्तों के बजाय 26 हफ्तों की पेड लीव दी जा रही है।हालांकि, कई कंपनियां पहले से ही यह सुविधा दे रही थीं। आपको बता दें कि भारत में महिला कर्मचारियों की संख्या 2005 में 37 फीसदी से फिसल कर 2013 में 27 फीसदी पर आ गई।
वहीं टीमलीज़ सर्विसेज की सह-संस्थापक और कार्यकारी उपाध्यक्ष ऋतुपर्णा चक्रवर्ती कहती हैं, ‘पुराने आंकड़ों के अनुसार, 2004-05 से 2011-12 में महिलाओं की निकासी की दर सात साल में 28 लाख रही। संशोधित मातृत्व लाभ अधिनियम के बाद एक साल में 11 से 18 लाख महिलाओं की नौकरी जाना हैरान करने वाला है। चक्रवर्ती ने कहा कि अगर हम इसे हर सेक्टर्स के साथ जोड़कर देखें, तो मातृत्व लाभ अधिनियम के चलते एक साल के भीतर करीब 1 से 1.20 करोड़ महिलाओं की नौकरी जा सकती है।