नवरात्रि के पहले दिन इस प्राचीन मंदिर में उमड़ता है भक्तों का सैलाब…

न्यूज़ डेस्क–आज से चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ हो गया है। नवरात्र के पहले दिन देवी मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा अर्चना की जाती है। नवरात्रों में देश भर के मंदिर सजाए जाते हैं, जहां पूरे नौ दिन मां के सभी रूपों की पूजा की जाती है। 

काशी के अलइपुरा इलाके स्थित देवी शैलपुत्री मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ उमड़ रही है। दूर-दराज से श्रद्धालु देवी मां के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। भक्त मां शैलपुत्री से अपने परिवार की सुख-शांति की मन्नतें मांग रहे हैं। वहीं पुलिस प्रशासन द्वारा मंदिरों में सुरक्षा कर्मी तैनात किए हैं, ताकि किसी प्रकार की के कोई अनहोनी घटना न हो पाए। वाराणसी में देवी भगवती के नौ स्वरूपों में अलग अलग मंदिर है जहा नवरात्री के प्रथम दिन से लेकर नवमी तक जगदम्बा के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन की मान्यता है ।धर्म  की  नगरी  काशी  में  भी  नवरात्री  के  नौ  दिनों  में  देवी  के  अलग  अलग  रूपों  की  पूजा विधिवत  की  जाती  है ; जिसमे सबसे पहले दिन माता शैल पुत्री के दर्शन का विधान है। नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं, शैलपुत्री का पूजन करने से मूलाधार चक्र’ जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं।   

ऐसी मान्यता है की देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या की थी। मान्यता है की इनके दर्शन मात्र से सभी वैवाहिक कष्ट मिट जाते हैं। माँ की महिमा का पुराणों में वर्णन मिलता है की राजा दक्ष ने एक बार अपने यहा यज्ञ किया और सारे देवी देवतायों को बुलाया मगर श्रृष्टि के पालन हार भोले शंकर को नहीं बुलाया। इससे माँ नाराज हुई और उसी अग्नि कुण्ड में अपने को भष्म कर दिया। फिर यही देवी सैल राज के यहा जन्म लेती है। शैलपुत्री के रूप में और भोले भंडारी को प्रसन्न करती है। 

वाराणसी में माँ का अति प्राचीन मंदिर है, जहा नवरात्र के पहले दिन हजारों श्रधालुयों की भारी भीड़ उमड़ती है। हर श्रद्धालु के मान में यही कामना होती है की माँ उनकी मांगी हार मुरादों को पूरा करेंगी। माँ को नारियल और गुड़हल का फूल काफी पसंद है। 

माँ शैलपुत्री देवी मंदिर के महंत गजेंद्र गोस्वामी ने नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री के स्वरूप के दर्शन के बारे में बताया कि माँ बहुत शांत स्वरूप में हैं। एक हाथ में त्रिशूल तो दूसरे हाथ में कमल ली हुई हैं और अपने हाथ से अमृत वर्षा करती रहती हैं और अपने भक्तो की मनोकामनाओ को पूर्ण करती रहती हैं। यही वजह हैं की भक्तो की भारी भीड़ होती हैं जिसकी वजह से प्रशासन के लोगो की भी काफी आवश्यकता पड़ती हैं।

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