( श्वेता सिंह )
परीक्षाएं शैक्षिक कैरियर में एक महत्वपूर्ण हिस्सा रखती हैं। जिस प्रकार से हमें किसी चीज़ को मापने के लिए एक मापदंड की आवश्यकता होती है ; उसी तरह हमारी अर्जित की गयी विद्या और शिक्षा को तौलने के लिए परीक्षाएं एक मापदंड की तरह कार्य करती हैं।
परीक्षाओं के दौरान छात्रों का चिंतित होना स्वाभाविक है। पढ़ाई के लिए किसी छात्र में चाहे कितनी भी दिलचस्पी हो , कितना भी पढ़ने का जूनून हो ; लेकिन परीक्षा के वक़्त अधिकांश बच्चे तनाव की स्थिति में आ ही जाते हैं। इन परीक्षाओं का थोड़ा बहुत तनाव तो छात्रों को पढ़ने के लिए प्रेरित करता है लेकिन इस तनाव की अधिकता नुकसानदायक साबित हो सकती है। आज के छात्र परीक्षाओं को बोझ की तरह लेते हैं और अपने आस -पास इतना तनावपूर्ण माहौल बना लेते हैं कि उनमें घबराहट , चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण साफ़ दिखाई देने लगते हैं।
मेरी समझ से एग्जाम्स का ये तनाव बुरा नहीं होता , यदि ये तनाव आपको कुछ अच्छा करने के लिए प्रेरित करता है ; तो वो ठीक है। आंकड़े बताते हैं कि परीक्षाओं के नज़दीक आने पर बच्चे ज्यादा मन लगाकर और अन्य दिनों की अपेक्षा 25% ज्यादा ही पढ़ाई की ओर ध्यान देते हैं। परीक्षाएं हमें दबाव में काम करना सिखाती हैं , हमें मानसिक तौर पर मज़बूत बनाती हैं , टाइम – मैनेज ( समय – प्रबंधन) करना सिखाती हैं और ये सब कुछ हमारे लिए कहीं न कहीं बहुत आवश्यक होता है। परीक्षा के दौरान थोड़ा स्ट्रेस लेना लाज़मी है। कई छात्र परीक्षाओं को कड़वी दवा की तरह मानते हैं और इसे पीना नहीं चाहते लेकिन इसे पिए बिना काम भी तो नहीं चल सकता। अब बात करते हैं परीक्षाओं की तयारी की ; तो ये तैयारी कुछ ख़ास होती है , जैसे कि घंटों किताबों में उलझे रहना , अलार्म लगाकर सुबह जल्दी उठना , टेलेविज़न आदि मनोरंजन के साधनों की कुर्बानी दे देना , लाइट जाने पर लैंप जलाकर पढ़ना ; ये ऐसे पल होते हैं जो हमेशा की दिनचर्या से अलग होते हैं और इनका एक अलग ही मज़ा होता है। परीक्षाओं के दौरान की जाने वाली पढ़ाई हमारे मष्तिस्क में एक गज़ब का कॉन्फिडेंस पैदा कर देती है।
बच्चों में परीक्षाओं के लिए डर पैदा होने के पीछे उनके अभिभावक ही काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं। इसमें भी माता – पिता की कोई गलती नहीं है। एक अच्छी नौकरी और एग्जाम्स में मिले अच्छे अंकों का जो गहरा नाता है ; वही उनको चिंतित कर देता है कि अगर उनका बच्चा अच्छे अंक नहीं ला पाया तो उसके भविष्य का क्या होगा और यदि फेल हो गया तो समाज में तो उनकी नाक कट जाएगी ;इसीलिए वो अपने बच्चे से अच्छे अंक लाने की उम्मीद करने लगते हैं। कुल मिलाकर सारी जद्दोजहद भविष्य में एक अच्छी नौकरी के लिए की जाती है। ऐसे में छात्रों को ये ध्यान रखना आवश्यक है कि उन्हें क्वालिटी – स्टडी पर ध्यान देना चाहिए न कि मार्क्स पर। यदि आपके पास टैलेंट है , बेसिक नॉलेज है तो आप किसी भी क्षेत्र में नए कीर्तिमान गढ़ सकते हैं।
परीक्षा परिणाम आते ही ऐसी खबरें आम ही जाती हैं कि अमुक छात्र ने कम अंक आने की वजह से आत्महत्या कर ली। 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में परीक्षा में असफल होने के कारण आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या लगभग 2,403 है। 2006-2010 के बीच यह आंकड़ा केवल 26% था लेकिन इधर कुछ वर्षों में इस आंकड़े में इजाफा ही होता जा रहा है। भारत में 30% छात्र ऐसे हैं जो केवल परीक्षा में असफल होने की वजह से ही मौत को गले लगा लेते हैं। प्रत्येक वर्ष परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद कई छात्र अवसाद एवं मानसिक असंतुलन की स्थिति में चले जाते हैं , कई घर छोड़कर चले जाते हैं और कई तो अपना जीवन ही समाप्त कर लेते हैं। इस तरह के बेवकूफी भरे काम को अंजाम देने वाले छात्रों पर दया से ज्यादा तो गुस्सा आता है। ऐसे में छात्रों को सोंचना चाहिए कि ये तो केवल एक छोटी सी परीक्षा है , इस एकेडेमिक एग्जाम में यदि आप टॉप नहीं कर पाए तो क्या हुआ ; ज़िन्दगी के इम्तिहान में आप निश्चित रूप से टॉप कर सकते हैं। इसलिए परीक्षा के इस दौर का मज़ा लें और परीक्षा के दबाव को सकारात्मक रूप में लेकर इम्तिहान की तैयारी करें।