न्यूज डेस्क–आज ईसाई धर्म का सबसे खास पर्व है क्रिसमस। इसी तारीख पर प्रभु यीशु का जन्म इजराइल के येरूशेलम में हुआ था। चर्चों में क्रिसमस डे के उपलक्ष्य में बिजली की लड़ियों से परिसरों को सजाया गया है।
क्रिसमस में केक और गिफ्ट के अलावा एक और चीज का इस त्योहार में विशेष महत्व होता है, वह है क्रिसमस ट्री। सदाबहार क्रिसमस वृक्ष डगलस, बालसम या फर का पौधा होता है जिस पर क्रिसमस के दिन बहुत सजावट की जाती है। क्रिसमस ट्री को इंग्लैंड में लोग किसी के बर्थडे, शादी या किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो जाने पर भी उसकी याद में रोपते हैं। इसके जरिए वो कामना करते हैं कि इससे पृथ्वी हमेशा ही हरी भरी रहे।
प्राचीन इतिहास और कुछ कथाओं से यह भी पता चला है कि क्रिसमस ट्री अदन के बाग में भी लगा था। मान्यताओं के मुताबिक अदन के बाग में लगे क्रिसमस ट्री को हव्वा ने भल को तोड़ा और खाया जिसे परमेश्वर ने खाने से मना किया था, तब इस वृक्ष की वृद्धि रूक गई और पत्तियाँ सिकुड़ कर नुकीली बन गई। कहते हैं कि इस पेड़ की वृद्धि उस समय तक नहीं हुई जब तक प्रभु यीशु का जन्म नहीं हुआ। उसके बाद यह वृक्ष बढ़ने लगा।क्रिसमस ट्री के बारे में एक और कथा है कि एक बढ़िया अपने घर देवदार के वृक्ष की एक शाखा ले आई और उसे घर में लगा दिया। लेकिन उस पर मकड़ी ने अपने जाले बना लिए। लेकिन जब प्रभु यीशु का जन्म हुआ था, तब वे जाले सोने के तार में बदल गए थे।
इस ट्री के संबंध में कहा जाता है कि जिन घरों में ये पेड़ होता है, वहां नकारात्मकता नहीं रहती है। मान्यता है कि इस वृक्ष को सजाने की परंपरा जर्मनी से शुरू हुई थी। जब ईसा मसीह का जन्म हुआ तो देवताओं ने उनके माता-पिता को बधाई दी थी। इसके लिए देवताओं ने एक सदाबहार फर को सितारों से सजाया था। उसी दिन से हर साल सदाबहार फर के पेड़ को क्रिसमस ट्री के प्रतीक के रूप में सजाते हैं। इसकी शुरुआत करने वाला पहला व्यक्ति बोनिफेंस टुयो नामक एक अंग्रेज धर्म प्रचारक था।