लोक आस्था का महापर्व छठ व्रत सोमवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया है। बताया जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिनी व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत हो गया। छठ पर्व षष्ठी तिथि का अपभ्रंश है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख- स्मृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व किया जाता है।
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वैज्ञानिक दृष्टि से भी पावन है छठ महापर्व
छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता है, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा। वह कार्तिकेय की पत्नी भी हैं। षष्ठी देवी देवताओं की देवसेना भी कही जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की पराबैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें माँ कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है। भैया दूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं। यह पर्व प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं।
इन बातों का रखें ध्यान
व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती जमीन पर विश्राम करती हैं। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई न की गयी हो। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालों साल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।
छठ पर्व में सफाई का विषेष महत्व होता है। छठ पूजा की किसी भी सामग्री को बिना नहाए नहीं छुना चाहिए। छठ का प्रसाद बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि पूजा से पहले इस किसी भी तरह से प्रसाद जूठा न होने पाए और नहीं इसमें पैर लगने दें। छठ पर्व में ठेकुआ का प्रसाद जरूर बनाएं क्योंकि यह छठी मैय्या का बेहद प्रिय है।
छठ पूजा अर्घ्य मन्त्र
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं।
अर्घ्यं च फलं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ।।
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