यूपी के उर्जा महकमे के बहुचर्चित पीएफ घोटाले की जांच अब सीबीआई ने अपने जिम्मे ले ली है. केन्द्रीय जांच एजेंसी की लखनऊ इकाई की एंटी करप्शन ब्रांच ने इस प्रकरण में प्राथमिकी दर्ज करके जांच की शुरूआत कर दी है. अभी तक इस घोटाले की जांच यूपी पुलिस की ईओडब्लू की टीम कर रही थी. इसमें दो मुख्य अभियुक्तों सहित 17 लोग जेल में बंद हैं.
गौरतलब है कि उर्जा महकमे में कुछ अफसरों की मिलीभगत से कर्मचारियों के पीएफ एकाउंट की भारीभरकम रकम को एक असुरक्षित निजी संस्था डीएचएफएल के हवाले कर दिया गया था. ये संस्था अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की श्रेणी में नहीं आती है तो वहीं, घोटालेबाजों ने सक्षम स्तर से अनुमोदन भी हासिल नहीं किया था और कर्मचारियों के सामान्य भविष्य निधि यानि जीपीएफ के 2631.20 करोड़ रुपये डीएचएफएल में निवेश कर दिए थे. मामले के उजागर होने पर शासन स्तर पर हड़कंप मच गया था. उर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की सिफारिश पर प्रदेश सरकार ने मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दिए. जिस के तहत यूपी स्टेट पॉवर सेक्टर इम्प्लाइज ट्रस्ट के सचिव आईएम कौशल ने लखनऊ के हजरतगंज थाने में मुकदमा दर्ज कराया था. आनन फानन में यूपीपीसीएल के तत्कलीन एमडी एपी मिश्र सहित 17 लोगों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया था. इस मामले की जांच ईओडब्लू के हवाले कर दी गयी थी. अरोपियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू ने बीती 31 जनवरी को चार्जशीट भी दायर कर दी थी. घोटाले के संबंध में उर्जा महकमे के तत्कालीन चेयरमैन एवं प्रमुख सचिव उर्जा संजय अग्रवाल,तत्कालीन सचिव उर्जा एवं एमडी अपर्णा यू सहित कई अफसरों से ईओडब्लू की जांच टीम ने पूछताछ की थी.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सख्त रुख को देखते हुए शासन स्तर पर इस घोटाले की जांच में तेजी आ गयी. पिछले साल 19 नवंबरर को अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी ने सीबीआई जांच के लिए केंद्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के सचिव को पत्र लिख दिया था.
अब सीबीआई ने जांच अपने हाथ में लेते हुए हजरतगंज थाने में दर्ज मुकदमे के आधार पर आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468 व 471 के तहत नया मुकदमा दर्ज कर लिया है. जिसमें यूपीपीसीएल के तत्कालीन निदेशक (वित्त) सुधांशु द्विवेदी, यूपी स्टेट पॉवर सेक्टर इम्प्लाइज ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता को अभियुक्त बनाया गया है.
माना जा रहा है कि कर्मचारियों की भविष्य निधि को जोखिम में डालने की साजिश रचने वालों पर कानून का शिकंजा सख्त हो सकेगा. साथ ही अभी तक कद्दावर आरोपियों के बचाव की जुगत भिड़ाने वाले सफेदपोश भी बेनकाब हो सकेंगे.