*लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी*
लखनऊ — जैसे क़यास लगाए जा रहे थे कि लोकसभा चुनाव बसपा-सपा साथ मिलकर लड़ेंगे उन क़यासों पर अब धीरे-धीरे मोहर लगनी शुरू हो गई है बुआ और बबुआ की बीते दिनों बुआ के घर पर डेढ़ घंटे से ज़्यादा की हुई मुलाक़ात ने यूपी की सियासत में सर्दी में भी पसीना ला दिया साथ ही एक और गठबंधन की उम्मीदों को पंख लगा दिए। क्योंकि बुआ और बबुआ ने इस गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखा है इसलिए अब एक ओर गठबंधन कांग्रेस के नेतृत्व में बनेगा जिसमें प्रसपालो प्रगतिशील, समाजवादी पार्टी लोहिया के शामिल होने की उम्मीदें लगाई जा रही है और भी कई दल है जिनके कांग्रेस वाले गठबंधन में शामिल होने चर्चा हो रही है।
*इस गठबंधन के बारे में हमने पहले ही बता दिया था लोकसभा संग्राम 37 में कि सपा बसपा की महत्वकांक्षा के चलते कांग्रेस ने बनाया बी प्लान हमारी वह ख़बर सही साबित होने जा रही है।* सपा-बसपा के बीच सहमति बन जाने की ख़बरें मिल रही है। हालाँकि इसकी घोषणा अभी नही की गई है लेकिन सूत्रों का कहना है कि सबकुछ तय हो गया है बसपा और सपा में से कौन किस सीट से लड़ेगा यह भी लगभग फ़ाइनल सा लग रहा है। फिर भी जब तक घोषणा नही हो जाती कुछ भी हो सकता है।
इससे भी इंकार नही किया जा सकता जो सूत्र बता रहे है अगर हम उसको ही सही मान ले तो यह गठबंधन मोदी की भाजपा के साथ कुछ ऐसे भी लोगों का भविष्य तय करेगा जो अपने-अपने क्षेत्रों में खुद को सियासत का क़लंदर समझते है।लेकिन वह इस गठबंधन का हिस्सा नही है उनकी भी सियासत की बिजली भागने से इंकार नही किया जा सकता है क्योंकि गठबंधन बन जाने के बाद मुसलमान व दलित एकजुट होकर मोदी की भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए वोट करेगा। जिसकी वजह से बहुत लोगों के संसद पहुँचने के अरमान ठंडे होते दिख रहे है।
ख़ैर हम बात कर रहे थे सपा और बसपा की कि कौन कहाँ से लड़ेगा पहले बात करते है बसपा की बसपा की दावेदारी इन सीटों पर रही सहारनपुर , मुज़फ़्फ़रनगर , मेरठ , आगरा , अलीगढ़ , बुलंदशहर , अकबरपुर , अंबेडकरनगर , बाँदा , बांसगांव , भदोई , चंदौली , देवरिया , धौरहरा , डुमरियागंज , फ़तेहपुर सीकरी , घोषी , हरदोई , हाथरस , जालौन , जौनपुर , खीरी , मछलीशहर , महाराजगंज , मिर्ज़ापुर , मोहनलालगंज , प्रतापगढ़ , रॉबर्टसगंज , सलेमपुर , संतकबीरनगर , शहाजहांपुर , सीतापुर व सुल्तानपुर एक दो सीट बदल सकती है वही सपा के पास जो सीट रहने की संभावना जताई जा रही है उनमें कन्नौज , बदायूँ , मैनपुरी , फ़िरोज़ाबाद , आज़मगढ़ , इलाहाबाद , फुलपुर , आँवला , बहराइच , बलिया , बरेली , बिजनौर , एटा , फ़ैज़ाबाद , फ़र्रूख़ाबाद , गौतमबुद्ध नगर , ग़ाज़ीपुर , गोंडा , झाँसी , बागपत , कैराना , गोरखपुर , अमरोहा , इटावा , कैसरगंज , बस्ती , मथुरा , कौशाम्बी , लालगंज , मुरादाबाद , नगीना , पीलीभीत , रामपुर , सँभल , श्रावस्ती व उन्नाव सपा के साथ लोकदल की साझेदारी भी शामिल है।
अब बात करते है कांग्रेस के बाहर रहने से क्या कोई फ़र्क़ पड़ेगा क्या वोट बँटने की संभावना है ऐसे और भी सवाल है जो लोगों के दिमाग़ में व सियासी गलियारों में अपनी जगह बनाए हुए है अगर हम 2017 के विधानसभा के चुनाव की बात करे तो कांग्रेस व सपा के बीच गठबंधन हुआ था मुसलमान पूरा गठबंधन पर उतरा यह बात अलग है कि यादव इस बार भी मोदी की भाजपा के साथ चला गया लेकिन मुसलमान में कोई टूट नही हुई वह अपनी उसी भूमिका में खड़ा रहा जैसे एक बँधवा मज़दूर को खड़ा रहना चाहिए। उसने किसी की नही सुनी जबकि उस गठबंधन के कोई मायने नही थे।
मुसलमान के लिए क्योंकि सपा का भी वोटबैंक मुसलमान और कांग्रेस का भी तो उसका परिणाम तो यही आना था और यह गठबंधन दलित को साथ लेकर बन रहा इसके परिणाम सकारातमक रहने की संभावनाओं से इंकार नही किया जा सकता। तो जब मुसलमान उस गठबंधन से नही भागा जिसके परिणाम अच्छे आने की उम्मीद नही थी तो वह इससे क्यों बँटेगा यह बात तर्कहीन लगती है। इस गठबंधन ने मोदी एण्ड शाह कंपनी की नींद हराम कर दी उसे कुछ सूझ नही रहा है कि वह क्या करे। लेकिन आम धारणा यह है कि विपक्ष के किसी भी गठबंधन में कांग्रेस को होना चाहिए बिना कांग्रेस गठबंधन अधूरा है कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने से सपा बसपा को अपना सियासी नुक़सान नज़र आ रहा है।
इसलिए वह उससे दूरी बनाए रखना ही बेहतर मान रहे है सियासी दलों को अपनी महत्वकांक्षा ज़्यादा ज़रूरी होती है न कि जनभावना ख़ैर कुछ भी कहो गठबंधन के परिणाम मोदी की भाजपा के साथ-साथ संघ को भी दिखाई देने लगे है जिस भाजपा में मोदी के सामने सब बोने नज़र आते थे वहाँ आज गड़करी पैदा हुए वह सब कुछ कह रहे जो पार्टी की बेहतरी के लिए कहना चाहिए।सपा बसपा के बीच हुए सियासी गठबंधन की घोषणा मायावती के जन्मदिन या उसके बाद होने की संभावनाएँ व्यक्त की जा रही है।