नई दिल्ली– बीजेपी हिमाचल प्रदेश में भी बगैर सीएम का चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ना चाहती थी। दरअसल बिना चेहरे के चुनाव लड़ना उसकी रणनीति का हिस्सा बन गया है। यूपी, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में उसे इसके जरिए कामयाबी मिल चुकी है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह सवाल अहम हो गया है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि मतदान से महज नौ दिन पहले बीजेपी को हिमाचल प्रदेश में प्रेमकुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना पड़ा।
अब तक के चुनाव अभियान से बीजेपी नेतृत्व को यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई थी कि राज्य में बगैर सीएम का चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ना खुद के लिए बड़ी चुनौती आमंत्रित करना है। बगैर सीएम उम्मीदवार के चुनाव प्रचार में धार नहीं आ रही थी। कांग्रेस नेता हर सभा में बीजेपी को बिना दूल्हे की बारात कहने लगे थे। दो बार के सीएम रह चुके प्रेमकुमार धूमल को अगर आलाकमान इस बार मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं कर रहा था तो उसके साफ मायने भी निकल रहे थे कि पार्टी को बहुमत मिलने पर नेतृत्व मुख्यमंत्री चुनने का विकल्प खुला रखना चाहता है। ऐसे में धूमल कैम्प में खासी निराशा थी।
बीजेपी के स्थानीय नेता मानते हैं कि अभी तक जो मुकाबला वीरभद्र सिंह बनाम मोदी दिख रहा था, उसमें बदलाव होगा। लड़ाई वीरभद्र बनाम धूमल होगी। पिछले चार चुनावों से यहां लड़ाई वीरभद्र बनाम धूमल ही होती रही है, जिसमें से दो बार वीरभद्र को और दो बार धूमल को कामयाबी मिली। दोनों के आमने-सामने लड़ाई का यह पांचवां मौका होगा। देखने वाली बात होगी कि नतीजा क्या होता है।