बाराबंकी — उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सबसे करीब बाराबंकी जनपद में महाभारत कालीन प्राचीन शिवमंदिर लोधेश्वर महादेव , कुंतेश्वर, अवसानेश्वर सहित सोमेश्वर जोगिनी शिवमंदिर में आज भी पौराणिक चमत्कार होता है,
जहां हर सोमवार के दिन यहाँ शिवभक्तों की जबरदस्त भीड़ जुटती है।लेकिन शिवरात्री के दिन यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है।इस मेले में काफी दूर-दूर से शिवभक्त यहाँ जलाभिषेक करने के लिए आते हैं , वही जनपद के हैदरगढ़ तहसील अंतर्गत सोमेश्वर जोगिनी शिवमंदिर में दैवीय चमत्कार से हर कोई परिचित है ।
इस मंदिर में आने वाले शिवभक्तों में अटूट आस्था देखने को मिलती है।शिवभक्तों का दावे के साथ कहना की इस प्राचीन शिवमंदिर में रखी शिवलिंग की पूजा अर्चना लाख पहरा देने के बाद भी सबसे पहले कौन करता है किसी को मालूम तक नहीं होता है और ये चमत्कार हर रोज रात करीबन बारह बजे होता है। हलांकि कुछ श्रद्धालुओं का कहना है इस मंदिर में आज भी सबसे पहले परिया ( योगिनी ) शिव भोले की पूजा अर्चना करने आती है।
बाराबंकी जिले में लखनऊ – वाराणसी राष्ट्रीय राज्य से सटे तहसील हैदरगढ़ स्थित शिवनाम गाँव में ये पौराणिक शिव योगिनी मंदिर स्थापित है। कहा जाता है इस मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना है और दैवीय शक्तियां द्वारा आज भी इस मंदिर के शिवलिंग की सर्व प्रथम पूजा अर्चना की जाती है। स्थानीय शिवभक्त श्रद्धालुओं का दावा है की लाख कोशिशों के बावजूद मंदिर की प्राचीन शिवलिंग कुवारी नहीं रहती हर वक्त शिवलिंग पर फूल प्रसाद चढ़ा ही मिलता है और यही वजह है की एक बड़ी आबादी वाले इस गाव का नाम शिवनाम पड़ा जहाँ का हर कोई शिवभक्त है ग्राम प्रधान विवेक वर्मा का कहना हैं इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना हैं जिनके बारे में क्षेत्र के बुजुर्ग भी जानते हैं और मन्दिर में एक अदृश्य शक्ति सर्व प्रथम पूजा अर्चना करती हैं।
पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान की थी शिवलिंग की स्थापना…
शिवनाम गांव में स्थित इस सोमेश्वर शिव मंदिर का इतिहास भी उतना ही पुराना है जितना पुराना महाभारत काल का इतिहास बताया जाता है , मन्दिर में प्रतेक सोमवार के दिन यहाँ हजारों की तादात में श्रधालुओं की भीड़ उमड़ती हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता है I
पौराणिक कथाओ के अनुसार पांडव यहाँ अज्ञातवास के दौरान काफी समय तक रहे और जिस परिक्षेत्र में जहाँ वो ठहरते थे वो वही शिवलिंग की स्थापना कर शिव जी का पूजन किया करते थे जो कालांतर में वही ऐसे कई शिवलिंग मिले है जिनका एक जैसा अकार है और जिनकी लम्बाई का लेखाजोखा नहीं किया जा सकता है। बारह बन का बदला हुआ नाम है बाराबंकी जी है जो उत्तर-प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सबसे करीब व घाघरा नदी के सीमा पर बसा हुया है।
महाभारत काल की बाराबंकी में घने जंगल थे जिन्हें बारह बन कहा जाता था विद्वानों व बुजुर्गों की माने तो और जिसका इतिहास गवाह है। कई शिवलिंगों की तो कुछ लोगों ने खोदाई भी की लेकिन कामयाबी हाथ न लगी और चमत्कार के आलावा कुछ भी उन्हें नजर नहीं आया तभी से होने लगी शिवमहिमा की चर्चाये दूर दूर तक पूरे क्षेत्र में आज भी बाराबंकी में कई पांडव कालीन अवशेष देखे जा सकते हैं । पांडव कालीन महाभारत काल का ये प्राचीन सोमेश्वर महादेव तीर्थ है जिसके नाम का गाव शिवनाम भी इतिहास में जुडा हुवा है।
कलयुग में चमत्कार की बाते करे तो विश्वास नहीं होता लेकिन ये सौ फीसदी सच के साथ यहा दावा किया जाता बताया जाता है। आज भी परियां – जोगनिया भगवान शिव जी का पूजन सर्व प्रथम करती हैं जिसका साक्ष्य होता शिवलिंग का भीगा होना।बचपन से लेकर 60 वर्ष के दौरान गाँव के शिवभक्त श्रीपाल ने भी मन्दिर में कई तरह की चमत्कारिक शक्तियां देखी हैं जो खुद अपनी ज़ुबानी सुना रहे हैं।
भैंस ने की जलाशय की खोज…
श्रीपाल की माने तो हजारों वर्ष पहले इस प्राचीन मंदिर व यहाँ के विशाल जलाशय का राज कोई नहीं जानता था आस पास इतना घना जंगल था की कोई भूले भटके भी इस स्थान तक नहीं पहुंच पाता था। इस जलाशय का पता एक भैंस ने लगाया था जो हर दिन इस जलाशय से नहाकर लौटती थी और धीरे धीरे आस-पास के लोग भी ये पूरी कहानी जानने लगे तभी तो आज भी इस मंदिर में रात्रि के दौरान कुछ अजीबोगरीब आवाजे सुनाई देती हैं।
रात में सुनाई देती है अजीबो-गरीब अवाजे…
कभी कभी किसी किसी की पायल बजने की आवाज आती हैं तो कभी कभी लगता हैं कुछ महिलाये मंदिर में पूंजा कर रही है। हालांकि प्रत्येक सोमवार को इस मंदिर पर 24 घंटे पढी जाने वाली अखंड रामायण के साथ साथ भगवान सत्य नारायण की कथाये भी होती है। इसके बावजूद मंदिर का 24 घंटे पहरा होने के बाद भी सर्व प्रथम शिवलिंग की पूंजा अर्चना हो जाती है। तभी तो प्रत्येक सोमवार सहित खासकर सावन के सोमवार और शिव रात्रि पर यहाँ शिवभक्तों का ऐसा हुजूम उमड़ता है की यहाँ की आस्था देखते ही बनती है ।
(रिपोेर्ट-सतीश कश्यप,बाराबंकी)