हिंदू धर्म में हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी का व्रत रखा जाता है और आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। देव उठनी एकादशी व्रत से दो दिन पूर्व आंवला नवमी का व्रत रखा जाता है। इस पुण्यतिथि पर किया गया कोई भी धार्मिक कार्य जैसे दान, गंगा स्नान, व्रत, पूजन करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में पुत्र की प्राप्ति के लिए आंवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। आंवले के वृक्ष पूजा करने से व्यक्ति के समस्त पाप दूर हो जाते है और फलदायी होता है। इस बार 12 नवंबर दिन शुक्रवार को आंवला नवमी या अक्षय नवमी का पर्व मनाया जायेगा। आइये आपको बताते है आंवला नवमी कब है और पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व…..
आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाने का महत्व:
हिंदू धर्म में अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा और व्रत भी किया जाता है। भोग लगाने के लिए खीर, पूड़ी और हलवा बनता है। उसके बाद आंवले के पेड़ के पास भगवान विष्णु कि तस्वीर रख करके पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का प्रिय फल है। शास्त्रों में अक्षय नवमी का महत्व वही बताया गया है जो वैशाख मास की अक्षय तृतीय का होता है। इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा भी है।
शुभ मुहूर्त:
आंवला नवमी 12 नवंबर दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन पूजा का सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 50 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। नवमी तिथि का समापन 13 नवंबर दिन शनिवार को प्रात: 05 बजकर 31 मिनट पर होगा। इस दिन व्रत के लिए उदयातिथि की मान्य होती है।
पूजन विधि:
आंवला नवमी के दिन वृक्ष के पास स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजन की सामग्री इकट्ठा करके वृक्ष के पास जाएं।
आंवला के वृक्ष के पास साफ-सफाई कर जल और कच्चा दूध अर्पित कर पूजन करें।
आंवला के वृक्ष पर कच्चा सूत या मौली लपेंटे फिर 8 परिक्रमा करें।
आंवला वृक्ष के नीचे बैठ कर भोजन करना शुभ माना जाता है।
किसी ब्राहाम्ण से आंवला नवमी की कथा सुनें या स्वयं भी कथा का पाठ कर सकती हैं।
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