फर्रुखाबाद— देश मे टीवी व किताबो में सन्तो की तपस्या का मंचन देखा होगा।लेकिन माघ मेला रामनगरिया पांचाल घाट पर बैष्णव सम्प्रदाय के नागा साधू किसी धूनी महंत से दीक्षा लेने के बाद तीन प्रकार की तपस्या करते है।
जिसमे मुख्य होती है अग्नि तपस्या यह तपस्या चार साल लगातार चलती है।जिसका शुभारंभ बसन्त पंचमी से जेष्ठ दशहरा तक की जाती है।जब सन्त जीवन मे मनुष्य प्रवेश करता है तो वह प्रथम वार में पांच धूनी की अग्नि तपस्या शुरू करके लगातार तीन साल तक करता है।
उसके बाद 7 धूनी की तपस्या व भी तीन साल चलती है।12 धूनी तपस्या,84 धूनी तपस्या,कोड धूनी तपस्या,खप्पर धूनी तपस्या सभी धूनियो का समय तीन साल का होता है।यह तपस्या इसलिए की जाती है ताकि सर्दी के मौसम में किसी साधू को सर्दी न लगे।इस अखाड़े का सन्त जब तक सभी तपस्याएं पूर्ण नही कर लेता है वह किसी को अपना शिष्य नही बना सकता है।
दूसरी तरफ इस तपस्या को करने वाले साधू जब तक अपनी पूजा पूर्ण नही कर लेते है तब तक कोई भी अन्न जल ग्रहण नही करते है।पंच दसनाम निर्मोही अनी अखाड़ा के सन्त नग्न अवस्था मे हमेशा रहते है।उसी बजह से इस प्रकार की कई तपस्याओं को करना पड़ता है।कोई भी साधू बनने से पहले जल तपस्या,वर्षा तपस्या को करना अनिवार्य होता है।जब वह सभी तपस्याएं पूर्ण कर लेता है तो उसको गुस्सा बहुत ही आता है। महंत बालकदास बाबा ने बताया कि हमारे अखाड़े से दीक्षा लेने के बाद तीन प्रकार की तपस्याओं को करना पड़ता है।
जल तपस्या बहते हुए हुए जल में सर्दियों में खड़े होकर 108 मटको से स्नान करना पड़ता है।यह भी साल भर में चार माह करने के साथ तीन साल तक करनी पड़ती है।उसके बाद वर्षा तपस्या इस तपस्या में साधू बरसात के समय खुले आसमान के नीचे खड़े होकर गुजारते है।यदि वर्षा के दौरान ओलावृष्टि हो तो भी साधू अपने सिर पर लौकी टोपी लगा सकता है।लेकिन तीनो तपस्याओं को करना अनिवार्य होता है।
धूनियो में आहुति के लिए यदि दस किलो काले तिल उसके आधे पांच किलो चावल उसके आधे ढाई किलो जौ का प्रयोग सामग्री में किया जाता है।यह तीनों तपस्याएं 18 सालो तक करनी पड़ती है।आज छः साधुओ ने अग्नि तपस्या की शुरुआत की है।बजरंगदास,रामजीदास,गंगादास,बालक दास, मुकेशदास नाम के साधुओ ने इस तपस्या में हिस्सा लिया है।
(रिपोर्ट-दिलीप कटियार,फर्रुखाबाद)