फर्रुखाबाद– जिले में बकरीद के त्योहार को लेकर मुस्लिम समाज के लोग अपनी-अपनी तैयारियों में लगे हुए। कुर्बानी को लेकर अपनी हैसियत से बाजारों से बकरे खरीद रहे है।
समाज मे जिन बकरों के शरीर पर बालो की बजह से अल्हा या खुदा जैसे शब्द बने दिखाई देते है उन बकरों की कीमत बाजार में सातबे आसमान पर पहुंच जाते है।इस प्रकार के बकरे हर साल जिले एक दो मिल जाते है।अपनी – अपनी निजी मान्यता के हिसाब से वह उन बकरों की कीमत अधिक लगा देते है।
दरअसल थाना शमशाबाद क्षेत्र के गांव पलिया में रामनरेश ने 19 माह से जो बकरा पाला था उसके शरीर पर अल्हा लिखे जैसी आकृति बनी हुई है। उन्होंने बताया कि हम तो हिन्दू है हमको नही पता था कि इसके शरीर पर अल्हा लिखा है मुझे मुस्लिम लोगो ने बताया उसके कई बड़े लोगो ने भी बताया उसी से अभी तक बकरा नही बेचा। वही शहर के जावेद रहमान ने बताया कि यदि किसी बकरे पर अल्हा लिखा होता है तो बकरीद के मौके पर अल्हा की कुर्बानी होती है उसी बजह से उस बकरे की कीमत अधिक हो जाती है।
वही शमशाबाद के मौलवी ने बताया कि जिन जानवरो के शरीर पर वालो की बजह से अल्हा या खुदा जैसे बालो की डिजाइन बन जाती है तो लोग अपनी हैसियत से उसकी कीमत बढ़ा देते है जबकि इस्लाम मे इन बातों को कोई हैसियत नही है। भारत मे अंधविस्वास अधिक है वही ऐसा काम करते है।इस प्रकार के केस हर साल आते है। यह उन लोगो का भृम है लोग अपनी निजी आस्था के कारण यह करते इस्लामिक शरीयत में इसको कोई जगह नही दी गई है।
इस्लाम की शरीयत में ऐसा कही नही लिखा है कि जानवरो के शरीर पर वालो की अल्हा जैसी डिजाइन को देखकर उसकी कीमत को अधिक लगा दी जाये। उस बकरे में कोई खाशियत नही जो उसकी कीमत सवा लाख रुपये लगा दी गई है उसके शरीर मे जितना मांस निकलता उसी हिसाव से उसकी कीमत होनी चाहिए।
(रिपोर्ट-दिलीप कटियार,फर्रुखाबाद)