आज ही के दिन जिला घोषित हुआ था कानपुर , पढ़ें पूरा इतिहास…

कानपुर–कभी भारत का मैनचेस्टर रहे कानपुर को 215 साल पहले आज ही की तारीख़ यानी 24 मार्च को ज़िला घोषित किया गया था. इस दौरान शहर ने लंबी यात्रा तय की है.

साल 1803 में आज ही की तारीख़ यानी 24 मार्च को ईस्ट इंडिया कंपनी ने कानपुर को ज़िला घोषित किया था.ज़िले में उस समय जो 15 परगना शामिल किए गए थे, उनके नाम हैं, बिठूर, शिवराजपुर, डेरापुर, घाटमपुर, भोगिनीपुर, सिकंदरा, अक़बरपुर, औरैय्या, कन्नौज, सलेमपुर, अमौली, कोढ़ा, साढ़, बिल्हौर और जाजमऊ.

साल 1857 के ग़दर में कानपुर की धरती ख़ून से लाल हुई थी. समय बीता और कानपुर एक औद्योगिक नगरी के तौर पर विकसित होने लगा. कई मिलें खुलीं इनमें लाल इमली, म्योर मिल, एल्गिन मिल, कानपुर कॉटन मिल और अथर्टन मिल काफ़ी प्रसिद्ध हुईं. यही असर था कि कानपुर को मिलों की नगरी के नाम से जाने जाना लगा. इतिहास की किताबों में ये शहर ‘मैनचेस्टर ऑफ़ द ईस्ट’ कहलाया जाने लगा.

आज़ादी के बाद भी कानपुर ने तरक़्क़ी की. यहां आईआईटी खुला, ग्रीन पार्क इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम बना, ऑर्डनेंस फैक्ट्रियाँ स्थापित हुईं. इस सबके बाद कानपुर का परचम दुनिया में फहराने लगा. पर 211 साल के लंबे सफ़र में कहीं कानपुर की गाड़ी शायद पटरी से उतर गई. सिविल लाइंस स्थित लाल इमली मिल की घड़ी जो लंदन के बिग बेन की तर्ज़ पर बनी है कभी कानपुर का चेहरा हुआ करती थी. आज घड़ी तो चल रही है पर मिल की मशीनें और लूम शांत पड़ चुकी हैं.

कानपुर चंदेल राजवंश के सचेंडी के राज्य के सदस्यों द्वारा स्थापित किया गया है. कर्णपुर: –(जिसका अर्थ है ’’कर्ण के शहर ’’, महाभारत के नायकों में सेएक) से ली गई है. कानपुर विकास – 13 वीं सदी तक यह स्पष्ट नहीं है. हालांकि कानपुर के लिए कोई संदर्भ इस समय से पहले लिखित दस्तावेज में नहीं पाया जाता है. उसके उपनगरों में से दो के इतिहास, जाजमऊ और बिठूर, पुराने है. हिंदू पौराणिककथाओं के अनुसार, ब्रह्मांड बनाने के बाद, भगवान ब्रह्मा बिठूर पर अश्वमेघ यज्ञ किया और वहाँ एक शिवलिंग की स्थापना की. बिठूर में एक और पौराणिक स्थल वाल्मीकि आश्रम, जहां प्रसिद्ध ऋषि वाल्मीकिसंस्कृत महाकाव्य, रामायण लिखा माना जाता है. इस महाकाव्य के अनुसार, माता सीता, तनहाई में आश्रम में अपने जुड़वां बेटों, लव और कुश के साथ रही थी.जाजमऊ – वहाँ एक प्राचीन किले के अवशेष, अभी भी एक विशाल टीले के रूपमें जीवित हैं. इस टीले पर हाल की खुदाई से संकेत मिलते है की ये जगह बहुत पुरानी है. प्राचीन चंद्रवंशी दौर का एक राजा था.शिवराजपुर:- कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन से 20 किमी दूर चंदेल राजा सती प्रसाद ने अपनी रानी की स्मृतिमें एक प्राचीन मंदिर बनवाया था. यह मंदिर माना जाता है कि एक रात में बनाया गया है और गंगा के किनारे पर स्थित है. यह मंदिर अपने वास्तुशिल्प काम और नक्काशी डिजाइन के लिए प्रसिद्ध है.

1207 ई. में राजा कांति देव प्रयाग (कन्नौज सिंहासन से जुड़े) गांव कोहना की स्थापना की थी. जो बाद में कानपुर के रूप में जाना जाने लगा. कानपुर हर्ष वर्धन, मिहिर भोज, जय चन्द और सुर राजवंश ने मुस्लिम शासकों के शासन काल के दौरान कन्नौज के साथ अपने सहयोग कोजारी रखा था. कानपुर का पहला उल्लेख है की शेर शाह के शासन के दौरान 1579 में बनाया गया था. 18वीं सदी में कानपुर एक मामूली गांवबन गया था.अवध के नवाब, जाजमऊ के पास ब्रिटिश हुकूमत से हार गया था. 1773 से 1801 में यह अवध राज्य का हिस्सा था और फिर अंग्रेजों के हाथों में आ गया. ब्रिटिश हुकूमत को कानपुर के महत्व का एहसास हुआ. यूरोपीय व्यवसायियों ने खुद को कानपुर में स्थापित करना शुरू कर दिया।कानपुर बाद में ब्रिटिश हुकूमत के सबसे महत्वपूर्ण सैन्य स्टेशनों में से एक बन गया. 24 मार्च 1803 को जिला घोषित किया गया था।. कंपनी बाग की नींव 1847 में रखी गई थी और गंगा नहर का निर्माण कार्य 1854 में पूरा किया गया.

 

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