50 हजार की सरकारी नौकरी छोड़, बच्चों को शिक्षित कर रहा है यह युवा

बहराइच — आज के दौर में लोग नौकरी की तलाश के लिए घर-द्वार भी गिरवी रख देते हैं। जिंदगी भी दांव पर लगा देते हैं। लेकिन जंगल से सटे उर्रा गांव निवासी एक युवक ने बैंक में तीन साल नौकरी करने के बाद इस्तीफा दे दिया। अब वह बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। ग्रामीणों के सहयोग से गरीब तबके के बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य-सामग्री भी उपलब्ध करा रहे हैं। यह क्षेत्र के लोगों में चर्चा का विषय है। इतना ही नहीं युवक गांव-गांव जाकर बच्चों की क्लास लगाता है।

 

बहराइच जिले के उत्तरी छोर पर स्थित मिहींपुरवा विकास खंड शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ है। शिक्षा के साथ गरीबी भी क्षेत्र के लोगों को परेशान करती है। गरीबी के कारण गांवों के ग्रामीण अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेज पाते। कुछ लोग ही अपने बच्चों को प्राथमिक विद्यालयों में भेजते हैं। लेकिन वह शिक्षा क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पाते। ऐसे में मिहींपुरवा विकास खंड के उर्रा गांव निवासी अभिषेक मौर्या पुत्र मिश्रीलाल उन बच्चों के लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। अभिषेक ने लखनऊ रहकर पढ़ाई की। इसके बाद कैनरा बैंक में 23 अगस्त 2013 को फील्ड आफिसर के पद पर नौकरी प्राप्त की। 23 वर्ष की आयु में नौकरी मिलने पर घर में खुशियों का माहौल हो गया। परिवारीजनों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशियां बांटी।

लेकिन अभिषेक गांव आने पर वह बच्चों की पढ़ाई व्यवस्था देखकर असहज महसूस करते थे। तीन सालों तक नौकरी की। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ने का मन मनाया। वर्ष 2016 के फरवरी माह में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वापस गांव आ गए। यहां पर वह बच्चों की शिक्षा में लग गए। अभिषेक जंगल से सटे उर्रा, नौबना, पैरुआ, कंचनपुर, खालेपुरवा, मझरा, कबेलपुर, नकौहा समेत अन्य गांवों में क्लास लगाकर बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। उर्रा का अंबेडकर पार्क, नौबना तथा अन्य गांवों में ग्रामीणों के द्वार पर ही क्लास लगा देते हैं। इससे इन गांवों के ग्रामीण भी काफी खुश रहते हैं। साथ ही संपन्न ग्रामीणों के सहयोग से बच्चों को नि:शुल्क पाठ्य-पुस्तक सामग्री भी वितरित कर रहे हैं।

पुत्र को अपने जीवन में फैसले लेने का हक

मिहींपुरवा विकास खंड अंतर्गत उर्रा गांव निवासी अभिषेक मौर्या के पिता मिश्रीलाल मौर्या से बात की गई तो उन्होंने कहा कि बेटे को नौकरी मिली तो बहुत खुशी हुई। लेकिन बेटा अब समझदार हो गया है। उसने नौकरी छोड़ने की बात कही। इस पर मैने कहा कि फैसले के लिए तुम आजाद हो, जो मन करे करो। गांव का नाम भी रोशन हो। इस पर पुत्र ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

पहले प्रयास में ही मिली फील्ड आफिसर की नौकरी

अभिषेक ने बताया कि उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से वर्ष 2008 में बीएससी किया। इसके बाद कानपुर के चंद्रशेखर आजाद यूनिवर्सिटी से एमएसी एजी किया। नौकरी के लिए बैंक में फार्म डाला। पहले प्रयास में ही फील्ड आफिसर के पर नौकरी मिली। 35 हजार वेतन के साथ कृषि प्रसार का 15 हजार मिलता था। कुल 50 हजार प्रतिमाह सैलरी मिलती थी।

गांव के अन्य युवा भी दे रहे साथ

अभिषेक द्वारा बच्चों को पढ़ाने का वीणा उठाया गया। इसके लिए गांव के आसपास गांवों में भी चर्चा होने लगी। बच्चों को शिक्षा देने के लिए कंचनपुर निवासी तिलकराम, उर्रा निवासी संदीप मौर्या, जितेंद्र मौर्या भी साथ दे रहे हैं।

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