फर्रुखाबाद–फतेहगढ़ का नगला दीना मोहल्ला यूं तो यहां कई घर हैं, पर एक घर कुछ मायनों में खास है। यहां एक घर है वीरेंद्र शर्मा का। जहां नजारा देखने वाला होता है उस मासूम की दिनचर्या का जो खुद नहीं देख सकता।
उसकी आंखों की रोशनी जा चुकी है, मगर वह सदभावना की ऐसी रोशनी बिखेर रहा है जिसमें ईश्वर और अल्लाह एक दिखते हैं। टैक्सी चालक वीरेंद्र का पुत्र 12 वर्षीय यह पुत्र सिद्धार्थ उर्फ़ दानिश के नाम से जाना जाता है । सिद्धार्थ की सुबह ईश्वर की उपासना से होती है तो वक्त-वक्त पर दानिश नमाज पढ़ता है। उसके कमरे में भगवान की मूर्तियां हैं तो पाक मक्का-मदीना की तस्वीर भी। बता दें 12 वर्षीय सिद्धार्थ शर्मा जब तीन माह का था तो वह बीमार हो गया। एक चिकित्सक से इलाज कराया तो उसकी आंखों की रोशनी चली गई। उसे इलाज के लिए दिल्ली ले गए। वहां एक गुरुद्वारा में रुक कर उसका इलाज कराने लगे। बताया कि सामने स्थित मस्जिद में अजान गूंजी। अजान के अल्फाज सिद्धार्थ के कानों में पड़े तो वह नमाज के दौरान की जाने वाली सभी क्रियाएं करने लगा। तब उसकी उम्र महज चार वर्ष थी। यह देख माता-पिता को तो आश्चर्य हुआ ही, साथ में गुरुद्वारा में मौजूद अन्य लोग भी अचंभित हो गए। कुछ धर्म के ठेकेदारों ने उसके मुस्लिम होने की बात छिपाने का आरोप लगाते हुए उल्टा-सीधा भी कहा, लेकिन कागजात देखकर वह लोग चुप्पी साध गए।
सिद्धार्थ की मां निधि शर्मा ने बताया कि इस घटना के बाद वह सिद्धार्थ को लेकर फतेहगढ़ आ गए। वहां से लौटने के बाद सिद्धार्थ की आंखों की रोशनी तो नहीं मिली, लेकिन जिंदगी की नई रोशनी उसने जरूर हासिल कर ली। सिद्धार्थ सुबह शाम पूजा तो करता ही है, साथ में वह वक्त-वक्त पर नमाज भी अदा करता है। इस कारण से सिद्धार्थ का नाम मो. दानिश भी पड़ गया। वह नियमित इबादत करता है। सिद्धार्थ रोजा रखने की जिद कर रहा था, लेकिन किसी तरह समझा कर उसे मना लिया। क्योंकि रोजा के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों का पालन करना बहुत कठिन है।
(रिपोर्ट-दिलीप कटियार, फर्रूखाबाद)