सपा परिवार की बंदर की तरह हो रही उछलकूद का किसे होगा लाभ ?

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उत्तर प्रदेश की सियासत में पिछले लगभग तीन दसको से मुलायम सिंह यादव परिवार यहाँ की राजनीति को अपने ही इर्दगिद घूमाने में सफल रहा है। इससे इंकार नही किया जा सकता, हालाँकि मायावती भी केन्द्र बिन्दू है यह भी सत्य है।

लेकिन आज कल जो हालात यादव परिवार में चल रहे है उससे यहाँ की सियासत में दूसरे दल के लिए जगह बनती दिखाई दे रही है। क्योंकि मुलायम परिवार की रार ने ही 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को आगे निकलने का मौक़ा दिया था। वैसे तो मुलायम का सियासत में कोई तोड़ नही है क्योंकि वह जब भी सकटों से घिरे या घेरे गये तो वह बहुत ही ख़ूबसूरती से उससे निकल भी जाते थे पर इस बार जो घिरे उससे निकलना मुश्किल लग रहा है उसकी सबसे बड़ी वजह इस बार वह अपने पारिवारिक सदस्य के द्वारा घिरे हुए है, एक तरफ़ बेटा तो दूसरी तरफ़ भाई है। यही वजह है कि वह अपना सियासी चरख़ा दाँव नही चला पा रहे है नही तो उन्होंने अपने इसी चरख़ा दाँव से देश के बड़े-बड़े राजनेताओं को सबक़ सिखाया है लेकिन इस बार खुद ही सबक़ सीख रहे है ऐसा लगता है। 

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देश में आगामी लोकसभा चुनाव 2019 का ताना बाना बुना जा रहा है और मुलायम सिंह परिवार अपने वर्चस्व की लडाई लड़ रहा है और इस लडाई में अगर कोई सबसे कमज़ोर दिख रहा है तो वह पिता व भाई की भूमिका दिख रही है जिसको एक राजनीतिज्ञ की तरह नही लिया जा रहा है। पारिवारिक रिस्ते मजबूर कर रहे है एक तरफ़ा और सही निर्णय लेने में यही वजह है कि पारिवारिक वर्चस्व की लडाई सड़कों पर लड़ी जा रही है और जो अपने राजनीतिक कौशल से सबको धराशायी कर देते थे आज वही धराशायी हो रहे है। वैसे सियासत में जितना लाभ मुलायम परिवार ने लिया देश में कोई दूसरा परिवार नही है क्योंकि इस परिवार ने कभी यह नही देखा कि कौन क्या है जैसे राजनीति में लाभ मिला वैसे ही लिया। देश में दो विचारधाराएँ काम करती है एक विचारधारा सबको साथ लेकर चलती है तो दूसरी विचारधारा नाथूराम गोड़से व नागपुरियां की सोच से चलती है इसमें देश को बाँटने जैसे भी हालात है कमाल की बात तो यह है कि मुलायम परिवार दोनों विचारधाराओं की फ़िल्म में अपना रोल प्ले करते रहते है ओर अपनी सियासत को चलाते है नही तो जो देखा गया है कि एक ही विचारधारा को लेकर चला जाता है।

 जैसे बिहार के जननेता लालू प्रसाद यादव ने आज तक साम्प्रदायिक ताक़तों के आगे घुटने नही टेके ओर सलाखों के पीछे रहना मंज़ूर कर लिया लालू की जगह मुलायम होते तो कभी सलाखों के पीछे नही जाते ओर न ही अब तक गए है नही तो ऐसे बहुत से मामले है जिनकी वजह से मुलायम का पूरा परिवार सलाखों के पीछे ही होता पर नही वह अपने राजनीतिक कौशल से सब कुछ मैनेज कर लेते है पर पारिवारिक रार से पार पाना मुश्किल ही नही न मुमकिन लग रहा है। चारो तरफ़ यही चर्चा है कि क्या होगा दसको के बनाए साम्राज्य का क्या यूँही बिखर जाएगा या समेट लिया जाएगा। अभी तक तो यही नज़र आ रहा कि मुलायम सिंह यादव ने परिवार को दो भागो में बाँट यह तय कर दिया है कि देश में दो विचारधाराओं की हो रही लडाई में जिस विचारधारा को सफलता मिले उसी के साथ खड़े हो जाएँगे परिवार के दोनों सदस्य बेटा व भाई कांग्रेस व मोदी की भाजपा के क़रीब है अब देखना है कि कौनसी विचारधारा इस आमचुनाव में कामयाब होती है सबको साथ लेकर चलने वाली या नाथूराम गोड़से व नागपुरिया वाली जिसने देश में साम्प्रदायिक माहोल बनाकर यह साबित करने पर तुले है कि हम ही है बस और कोई नही।

दरअसल मुलायम सिंह यादव ऐसे कौशल राजनेताओं में सुमार है जो कठिन से कठिन हालातों से भी अपने लिए या परिवार के लिए रास्ते निकाल लेते है विरोधी या जनता कुछ भी सोचे वह इसकी परवाह किए बिना अपना फ़ैसला कर लेते है। अब इसका क्या असर होगा क्या नही यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन फिलहाल जो क़यासों का दौर चल रहा उससे सही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मुलायम परिवार के दोनों हाथो में लड्डू है जो भी विचाराधारा देश की सत्ता पर क़ाबिज़ होगी उसी विचारधारा के साथ खड़े हो जाएँगे और जो लोग उनको व उनके चरख़ा दाँव पर सवाल उठा रहे है वह खुद सोचने पर मजबूर होगे क्योंकि मुलायम सिंह यादव भाई को भी नही छोड़ना चाहते है और न ही बेटे को कमज़ोर करना चाहते है यह मुलायम का गेम प्लान। अब इस गेम में किसको लाभ होगा और किसको हानी यह कहना मुश्किल है भाई को भाजपा के क़रीब पहुँचा दिया और बेटे को बसपा की नेता आर्यन लेडी मायावती के क़रीब खडे है अब यह कहना अभी जल्द बाज़ी होगी की बेटा कामयाब होगा या भाई या दोनों ही हो जाएँगे फ़ेल यह आने वाले दिनों में हो पाएगा साफ।

—(तौसीफ़ क़ुरैशी)

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