नौ दिन की श्रद्धा के आगे आख़िर क्यों नौ माह के कर्ज़ को भूल जाते हैं !

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मेरठ —  हिंदू धर्म में मां को भगवान से भी बड़ा दर्जा दिया गया है और इस समय देवी के पावन नवरात्र भी चल रहे हैं। दुनिया भर के मंदिरों में माँ की जयजयकार हो रही है।

लोग देवी मां को मनाने के लिए मंदिर जाते हैं और अपने घर में आने का निमंत्रण देते हैं । लेकिन जिस माँ ने उन्हें जन्म दिया और उंगली पकड़कर चलना सिखाया आज उसी माँ को उनके बच्चों ने घर से बाहर निकाल दिया, और वृद्ध आश्रम के अंधेरों में डाल दिया है। 

दरअसल मेरठ के गंगानगर स्थित साईं सेवा संस्थान वृद्ध जन आश्रम आजकल ऐसे बुजुर्गों से भरा पड़ा है जिन्हें उनके अपने ही वहां छोड़ आए हैं । यहां रहने वाले लोग खुश तो दिखाई देते हैं लेकिन अंदर कई गम लिए हुए हैं। वृद्ध आश्रम के गेट पर टकटकी लगाए नम छलकते आंसू से अपने बेटों को याद कर एक मां के मन में शायद यही सवाल रोजाना उठता होगा कि शायद अब जल्द ही उसका बेटा उसे लेने आएगा, शायद बहू अब मान गई होगी कि जाओ आज माजी को ले आओ। लेकिन बेचारी मां को क्या पता कि जिस कोख़ में उसने अपनी संतान को नौ माह पाला उसका वह बेटा तो उसे कब का भूल चुका है ।

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 जी हां कुछ कड़वा है लेकिन सच जरूर है, कि मां बाप ने अपनी सारी इच्छाएं भुलाकर अपनी जिस संतान को दुनिया के सभी सुख दिए वही आज उनके साथ नहीं रहना चाहती। यहां रह रहे हैं वृद्ध अपनी दास्तां बताते हैं तो बात के साथ आंसू अपने आप निकलते है। परिवार ने उन्हें निकाला और वृद्धा आश्रम ने संभाला। जिसने उंगली पकड़कर दुनिया दिखाई, वह ऐसे बदलेगा उम्मीद नहीं थी। फिर भी, अपना है सोचकर सब सहते रहे। लेकिन, एक आस पता नहीं क्यों मन में रहती है कि एक दिन बेटा लौटेगा और कहेगा कि माँ तेरी बहु बदल गई है अब घर चल।

गौरतलब है कि यहां रहने वाले बुजुर्गों की उम्र 60 से 80 वर्ष है। कहने को इन बुजुर्गों में किसी का बेटा इंजीनियर है, किसी का मैनेजर। किसी का सरकारी अधिकारी, तो किसी का बेटा निजी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर। लेकिन, साथ कोई नहीं। यहां रह रहे हर बुजुर्ग की कहानी अलग है। लेकिन, सबका दर्द एक-सा कि अपनों ने साथ छोड़ दिया। और, सबकी उम्मीदें भी एक-सी, अपने आएंगे, साथ ले जाएंगे और फिर अपने परिवार में रहने का सुख मिलेगा।

बेटे तो बेटे लेकिन इन माँ बाप का दर्द सुनकर तो बेटियों से भी विश्वास उठ जाएगा। जिन अनाथ बेटियों को गोद लिया मां बाप का नाम दिया और बड़ी लाड़ से पाला और बड़ी धूमधाम से उनकी शादी की । लेकिन जब मां बाप बूढ़े हो गए और आज उन्हें अपनों के सहारे की जरूरत पड़ी तो उन बेटियों ने उनका सहारा बनने की बजाय अपने बूढ़े माँ बाप को घर से बाहर निकाल दिया। इन बूढ़े माँ बाप से बात कि तो उनका कहना है कि उनके कोई संतान नही थी तो उन्होंने लड़के और लड़की का फर्क ना करते हुए दो बेटियां गोद ली थी और बड़े ही लाड से उनकी परवरिश की और उनकी शादी कर दी। यहाँ तक कि अपनी प्रोपर्टी भी बेटियों के नाम कर दी। लेकिन वक्त ऐसा बदला कि जिन बेसहारा बेटियों को उन्होंने सहारा दिया था आज उन्होंने ही उनका आशियाना छीन लिया।

वहीं जब आश्रम की संचालिका नम्रता शर्मा का कहना है कि जो लोगो अपने मां-बाप को घर से बाहर निकालकर मन्दिर में जाकर माँ की पूजा करते हैं वो सब महज लोक दिखावा होता है। क्योंकि जो इंसान अपनी जन्म देने वाली मां को ही घर से बाहर निकाल दे तो क्या उसे मन्दिर में भगवान मिलेंगे। नम्रता ने कहा कि वो पिछले कई सालों से अपने पति और बेटे के साथ मिलकर इन वृद्धजनों की सेवा करती हैं। नम्रता ने ये भी कहा कि नवरात्रों के व्रत चल रहें हैं और ऐसे में वो मन्दिर में पूजा करने के बजाय इन बुजुर्गों की सेवा करके ही अपना व्रत खोलती हैं और इन बुजुर्गों का आशिर्वाद पाकर अपने आप को भाग्यशाली समझती हैं।

(रिपोर्ट-शुभम शर्मा,मेरठ)

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