पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए पितरों का ऐसे करें तर्पण…

0 16

फर्रुखाबाद– हिन्दूधर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता,पूर्वजों को नमस्कार प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है। हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं। इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं। 

इस धर्म मॆं ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया। जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध,तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं। यदि कोई कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते हैं|

Related News
1 of 1,456

पूर्णिमा से अमावस्या के ये 15 दिन पितरों को कहे जाते हैं। इन 15 दिनों में पितरों को याद किया जाता है और उनका तर्पण किया जाता है। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 24 से 8 अक्टूबर तक श्राद्धपक्ष रहेगा। जिन घरों में पितरों को याद किया जाता है वहां हमेशा खुशहाली रहती है। इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए पितरों का तर्पण किया जाता है। जिस तिथि को पितरों का गमन (देहांत) होता है उसी दिन पितरों का श्राद्ध किया जाता है। 

श्राद्ध चार प्रकार किया जाता है।नन्दी मुख श्राद्ध,एकोद्दिष्ट श्राद्ध,पार्वण श्राद्ध,तीर्थ श्राद्ध और दशगात्र इन सभी श्राद्ध का अलग अलग महत्व है।श्राद्ध के अंतर्गत तर्पण आता है जिससे लोग अपनी तीन पीढ़ियों के पूर्वजो को जल देते है।वेदों के अनुसार जो लोग अपने पितरों को जल दिए बिना भोजन ग्रहण करते है वह हमेशा दुखी व कष्ट से घिरे रहते है।उनके जो पितृ होते है उनकी आत्माएं भूखी प्यासी बनी रहती है वह लोग अपने के प्रति द्रोही हो जाते है।श्राद्ध और तर्पण को किस स्थान पर करना चाहिए जैसे गंगा तट,पीपल के पेड़ के नीचे,तुलसी के पेड़ के पास,मंदिर आदि स्थानों पर करने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है।अपने परिवार के प्रत्येक पितृ को तीन तीन बार जल देना चाहिए,देवताओ को एक वार,अन्य रिस्तेदारी को दो बार जल देना चाहिए।पितरो को सफेद वस्तु अधिक प्रिय है इसके लिए सफेद फूलो का इस्तेमाल किया जाता है।

(रिपोर्ट- दिलीप कटियार , फर्रुखाबाद )

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Comments
Loading...