..जब जुबां से छलका वृद्धाश्रम की माताओं का दर्द !
फर्रुखाबाद– देश कभी भारतीय संस्कृति के लिए पूरे विश्व मे जाना जाता था; लेकिन 21 वीं सदी में औलाद अपनी माँ को भी घर मे नही रख सकते है।
जो मां अपने बेटे के लिए बचपन मे गीले बिस्तर पर खुद सोती थी लेकिन बेटे को सूखे में सुलाती थी ; वही मां आज अपने बेटे व बहु के कारण वृद्धा आश्रमो में अपना जीवन काटने पर मजबूर है। सतयुग में श्रवण कुमार ने अपने अंधे माँ-बाप को कंधे पर डोली में बैठाकर चारो धाम की यात्रा कराई थी। कलयुग का बेटा श्रवण कुमार अपनी मां को वृद्धा आश्रम की यात्रा करा रहा है।
शहर के वृद्धा आश्रम में जब बृद्ध माताओ से बातचीत की गई तो उनका दर्द उनके मुंह पर आ गया। पिपरगांव कि रहने वाली कलावती ने बताया कि दो बेटे घन श्याम सिंह व शेर सिंह है।एक साल पहले बहु की बजह से हम आश्रम में चली आई लेकिन बेटे ने मुझे नही रोका। जब बीमार होती हूं तो आश्रम वाले ही बेटे की तरह मेरी देखभाल करते है।बेटा जब जेल में था तब उसके लिए दर्जनों लोगों के पैर पकड़कर उसको बाहर निकलवाया था।वही बेटा आज नही जानता की माँ की हालत क्या है।
वही नारायणपुर की रहने वाली हंसा देवी ने बताया कि उनके तीन बेटे है राजबहादुर,राजकिशोर,राजकपूर लेकिन जबसे बेटों का विवाह हुआ है।तभी से बहुओं के आगे मेरी कोई इज्जत नही होती।दूसरी तरफ पहले जैसा काम मेरा शरीर नही कर सकता लेकिन बहुओं को काम चाहिये। रोज झगड़ा करती थी। जब लड़के कहती तो वह मुझ पर रौब झाड़ता था परेशान होकर घर छोड़ने पर मजबूर हो गई यहां आकर रहने लगी यहां पर मुझे सुकून मिलता है।
वृद्धा आश्रम संचालक राजेश कुमार का कहना है कि मातृ दिवस होने के बाबजूद किसी भी महिला का बेटा उनसे मिलने नही आया।यदि बेटा अपनी के बताए रास्ते पर चलते तो शायद यह बुजुर्ग महिलाए आश्रम में नही होती है।
(रिपोर्ट – दिलीप कटियार , फर्रुखाबाद )