आखिर क्यों चुप रहती हो तुम, विरोध क्यों नहीं करती ?
—(श्वेता सिंह)
रोज की तरह ही आज भी सिटी बस शाम के समय खचाखच भरी थी ; लेकिन आज कुछ ऐसा देखा जिसकी कसक अब भी मन में है।
रोजाना की तरह बस पर चढ़ते ही कुछ जाने – अनजाने चेहरों के साथ मेरा सफर शुरू हो गया। अक्सर बस में हम महिलायें दो की सीट पर तीन लोग एडजस्ट करके बैठ जाते हैं। आज भी वही हुआ ; लेकिन सामने किनारे की तरफ बैठी एक मेरी हमउम्र लड़की आज कुछ असहज महसूस कर रही थी। मैंने उसकी तकलीफ समझने के लिए आस -पास नज़र दौड़ाई तो देखा कि एक महाशय भीड़ का फायदा उठाकर उस लड़की से बिलकुल चिपके जा रहे थे। उस इंसान की हरकतें भी कुछ संदिग्ध सी लग रही थीं। लड़की ने उस व्यक्ति को दो – तीन बार टोका भी कि कृपया करके आप पीछे पुरुषों के साथ खड़े हो जाएँ; लेकिन महाशय अपनी गतिविधियों में इतने ज्यादा तल्लीन थे कि उन्होंने उस आवाज को अनसुना कर दिया। अंततः तंग आकर उस लड़की ने ही अपनी जगह से उठकर खड़े हो जाना मुनासिब समझा।
इस पूरी घटना के दौरान मै उस लड़की के चेहरे पर लगातार आ – जा रहे भावों को और उसकी परेशानी को पढ़ने की कोशिश करती रही। अचानक से ऐसे कई वाकये मेरे जेहन में कौंध आये जो मैंने अब देखे और सुने थे। मैंने महसूस किया कि आखिर ऐसा क्या कारण था कि वह लड़की अपने साथ हो रही गलत हरकत का खुलकर विरोध नहीं कर पायी? क्यों उसने आवाज उठाने की बजाय अपनी जगह से उठ जाना जरूरी समझा ?
दरअसल हम लड़कियों के साथ छेड़खानी और गंदे – भद्दे कॉमेंट्स होना भी आम बात है। इतना सब हो जाने के बावजूद भी कुछ लड़कियां इन सबके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं कर पाती हैं। शायद हमारे संस्कारों की जंजीर थोड़ी ज्यादा मोटी है और ‘समाज क्या कहेगा’ एक बड़ा खंजर। जी हाँ , ‘समाज क्या कहेगा’ ये तीन शब्दों वाला धारदार खंजर ही होता है ; जो महिलाओं को गलत बर्दास्त करने के लिए मजबूर कर देता है। एक लड़की के लिए ऐसी गलत हरकतों वाला पल बेहद ही डराने वाला होता है और यह डर तब तो और भी बढ़ जाता है जब वह घटनास्थल या वहां मौजूद लोग रोज़ाना कहीं न कहीं आपकी ज़िंदगी से जुड़े हों। एक और सबसे बड़ा कारण यह है कि भारतीय लड़कियों को बचपन से ही यह अहसास दिला दिया जाता है कि तुम एक लड़की हो ,तुम्हें ऐसे चलना है , ऐसे रहना है ,जमाना खराब है , लोग क्या कहेंगे वगैरह – वगैरह। संस्कार दर्शाने वाली यह लम्बी – चौड़ी लिस्ट ही कभी कभी महिलाओं को अपराधों के खिलाफ आवाज उठाने से रोक देती है।
अगर बस में बैठी वह लड़की उस गलत हरकत कर रहे शख्स का पुरजोर विरोध करती तो शायद अगले दिन से वह या तो अपना रोज का रास्ता ही बदल देती या फिर मुँह पर कपड़ा बांधकर खुद को ही छिपाने की कोशिश करती। क्योंकि यह सोसाइटी अक्सर विरोध के स्वर उठाने वाली महिलाओं को ही हेय दृष्टि से देखती है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को अपने लिए बने कानूनों की जानकारी होना भी अति आवश्यक है। इससे उनका हौंसला नहीं डगमगाता है। महिलाओं को मालूम होना चाहिए कि अनचाहा शारीरिक स्पर्श भी यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है और इसके लिए अपराधी को तीन वर्ष के कठोर कारावास का प्रावधान है। मेरे विचार से जब सभी लड़कियों को अपने अधिकार , कानून ,कर्तव्य की जानकारी हो जाएगी ; तब वह अपने साथ हो रहे यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने में तनिक भी संकोच नहीं करेंगी। साथ ही इस कार्य में समाज को भी महिलाओं का साथ देना होगा।
महिलाऐं समाज से कुछ ज्यादा नहीं मांगती है, बस समाज में जो लड़कियों के प्रति रूढ़िवादी सोंच बसी हुयी है ; वह उससे आज़ादी चाहती हैं और वह किसी से आगे नहीं चलना चाहती केवल सबके साथ चलना चाहती हैं। तभी तो सबका साथ , सबका विकास का सपना पूरा हो पाएगा।