पीएम मोदी ने हाई कोर्ट के जजों और मुख्यमंत्रियों को किया संबोधित, कहा- जनता की भाषा में हो न्याय

आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में पीएम मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के संयुक्त सम्म्मेलन का संबोधित किया।

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आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में पीएम मोदी ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के संयुक्त सम्म्मेलन का संबोधित किया। इस दौरान पीएम मोदी ने ने कहा कि, हमारे देश में टेक्नोलॉजी और डिजिटलाइजेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है। एक ओर judiciary की भूमिका संविधान संरक्षक की है। वहीं legislature नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है। ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का roadmap तैयार करेगा।

पीएम मोदी ने किया उद्घाटन:

पीएम मोदी ने उद्घाटन करते हुए कहा कि, ‘बड़ी आबादी न्यायिक प्रक्रिया और फैसलों को नहीं समझ पाती, इसलिए न्याय जनता की भाषा में होना चाहिए. क्योंकि आम लोगों को लोकभाषा और सामान्य भाषा में कानून समझने से न्याय के दरवाजे नहीं खटखटाने पड़ते हैं। उन्होंने आगे कहा कि राज्य के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की ये संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है। आज ये सम्मेलन आजादी के अमृत महोत्सव पर हो रहा है। उन्होंने आगे कहा कि हमें देश की आजादी के शताब्दी वर्ष को ध्यान में रखते हुए सबके लिए सरल, सुलभ, शीघ्र न्याय के नए आयाम खोलने गढ़ने की ओर आगे बढ़ना चाहिए।

ई कोर्ट परियोजना लागू:

पीएम मोदी ने कहा, ‘भारत सरकार न्यायिक प्रणाली में प्रौद्योगिकी को डिजिटल इंडिया मिशन का एक अनिवार्य हिस्सा मानती है। हम न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। ई-कोर्ट परियोजना आज मिशन मोड में लागू की जा रही है।

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लक्ष्मण रेखा’ का रखें ध्यान:

कार्यक्रम में मौजूद CJI एनवी रमना ने कहा कि हम सबको ‘लक्ष्मण रेखा’ का ध्यान रखना चाहिए। यदि कोई ल्ल्भी काम कानून के अनुसार हो तो न्यायपालिका कभी भी शासन के रास्ते में नहीं आएगी। अगर नगरपालिकाएं, ग्राम पंचायतें कर्तव्यों का पालन करती हैं, यदि पुलिस ठीक से जांच करती है और अवैध हिरासत में टॉर्चर समाप्त होता है तो लोगों को अदालतों की ओर देखने की जरूरत ही नहीं होगी।

वहीं सीजेआई ने आगे कहा कि जनहित याचिका (पीआईएल) के पीछे अच्छे इरादों का दुरुपयोग किया जाता है। दरअसल इन परियोजनाओं को रोकने और सार्वजनिक प्राधिकरणों को आतंकित करने के लिए ‘व्यक्तिगत हित याचिका’ में बदल दिया गया है। इतना ही नहीं यह राजनीतिक और कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्वियों के साथ स्कोर तय करने का एक साधन बन गया है।

 

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