बुआ-बबुआ को मिलाने में सूत्रधार बने संजय सेठ,आखिर कौन है ये हस्ती

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न्यूज डेस्क — उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर सम्पन्न हुए लोकसभा उपचुनाव के आये नतीजों के बाद भाजपा के ही नहीं, देश के धुरंधर राजनीतिक विश्लेषकों की भी नींद उड़ा दी है. इन दोनों संसदीय सीटों के नतीजे आने के बाद सूबे के पूर्व दो मुख्यमंत्रियों मायावती औ अखिलेश यादव ने आपस में मुलाकात की.

इस उपचुनाव के ठीक पहले सपा और बसपा ने आपस में गठबंधन का ऐलान किया, जिसका सुपरिणाम अब सामने है, मगर सबसे बड़ी बात यह है कि बुआ और बबुआ को आपस में मिलाने में संजय सेठ सूत्रधार बने हैं. यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर यह संजय सेठ हैं कौन, जिन्होंने बुआ और बबुआ को आपस में मिलाने का इतना बड़ा काम किया.

कौन हैं संजय सेठ?

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बुआ और बबुआ को आपस में मिलाने में सूत्रधार बने 55 साल के संजय सेठ दरअसल उन्नाव के रहने वाले हैं. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से कॉमर्स में स्नातक की उपाधि हासिल की है. संजय ने रियल एस्टेट में अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1985 में एसएएस होटल्स एंड प्रॉपर्टीज लिमिटेड नामक कंपनी से की थी. बाद में इसी कंपनी का नाम बदलकर शालीमार ग्रुप किया गया. शालीमार ग्रुप का इस समय उत्तर प्रदेश के अलावा दिल्ली और पंजाब में भी कर्इ परियोजनाएं चल रही हैं.

 मुलायम परिवार के काफी करीबी हैं संजय सेठ

दरअसल, पेशे से बिल्डर संजय सेठ भारत के रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन परिसंघ (क्रेडार्इ) की लखनऊ इकाई के अध्यक्ष हैं. बुआ और बबुआ की इस मुलाकात के बाद संजय सेठ मीडिया में चर्चा में आ गये हैं.पिछले साल ही संजय सेठ को सपा के टिकट से राज्यसभा भेजा गया. संजय सेठ की उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं और नौकरशाहों के बीच अच्छी पैठ मानी जाती है. शालीमार ग्रुप के प्रमुख होने की वजह से संजय सेठ मायावती, अखिलेश यादव और मुलायम सिंह तीनों ही नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध हैं.

सूत्रों की माने तो तीन सौ करोड़ से भी अधिक लागत से बन रहे सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट जेपी इंटरनेशनल का निर्माण भी यही शालीमार ग्रुप करा रहा है.इसके अलावा संजय सेठ को मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव का सबसे अधिक करीबी माना जाता है. प्रतीक यादव भी रियल एस्टेट उद्योग से जुड़े हुए हैं.गौरतलब है कि अखिलेश और मायावती के बीच हुई मुलाकात में सूत्र धार बनने में यही सबसे बड़ी वजह सामने आ रही है.शयद यहीं वजह है कि दो बड़े नेता एक साथ मिलकर भाजपा को मात देने में सफल हुए.

 

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