प्रदेश में यौन क्षमता बढ़ाने के लिए गधों को मारकर खा रहे हैं लोग..
कथित तौर पर लोग मान रहे हैं कि गधे के मांस खाने से पीठ दर्द, अस्थमा ठीक होता है....
भारत में गधों (donkeys) पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यही वजह है कि सरकार ने इसे विलुप्त होने वाले जानवरों की लिस्ट में रखा है। एक तरफ भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण यानी FSSI ने गधे को फूड एनीमल के तौर पर रजिस्टर्ड नहीं कर यह संदेश दे दिया है कि इन्हें मारना अवैध है।
वहीं, दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश के कई जिलों में लोग गधों को मारकर उसका मांस खा रहे हैं।
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दरअसल तेलांगना टुडे में छपी खबर मुताबिक, आंध्र प्रदेश के सरकारी अधिकारी प्रदेश के कुछ जिलों में गधे के मांस के कथित सेवन की आशंका जता रहे हैं। कथित तौर पर लोग मान रहे हैं कि गधे (donkeys) के मांस खाने से पीठ दर्द, अस्थमा ठीक होता है। यही नहीं लोगों का मानना है कि इस मांस से सेक्स पावर भी बढ़ता है।
इन जिलो में होता है सबसे ज्यादा सेवन
एक पशु कल्याण कार्यकर्ता सुरबाथुला ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि गदहे का मांस ज्यादातर प्रकाशम, कृष्णा, पश्चिम गोदावरी और गुंटूर जिलों में खाया जाता है।
पशु कल्याण कार्यकर्ता सुरबाथुला ने कहा कि हर गुरुवार और रविवार को मांस की बिक्री होती है, जहां कुछ पढ़े-लिखे लोग भी इसे खरीदते हैं। माना जाता है कि इन मौकों पर कम से कम 100 गधों (donkeys) का वध किया जाता है। गदहे के मांस को बेचने के व्यापार से जुड़े लोग कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र से जानवरों की खरीद कर रहे हैं।
करीब 600 रुपये किलो बिकता है मांस
बताया जाता है कि एक किलो गधा का मांस लगभग 600 रुपये में बेचा जा रहा है और सभी समुदायों के इच्छुक लोगों द्वारा इस मांस को खरीदा जा रहा है। हालांकि, कई पशु प्रेमियों ने गदहा मांस बेचने के इस अवैध व्यापार पर केस दर्ज कराए हैं, जिससे अन्य राज्यों से गधा लाने के मामले में प्रशासन की भी सतर्कता बढ़ी है।
गधे के खीन से मिलती है ताकत
पशु अधिकार कार्यकर्ता के अनुसार, गधे का मांस खाने की आदत प्रकाशम जिले के एक जगह से पहले शुरू हुई थी। एक समय में यह जगह चोरों का केंद्र हुआ करता था। एक मिथक यह था कि गधे (donkeys) के खून पीने से इंसान को इतनी ताकत मिलती है कि वह लंबे समय तक दौड़ सकता है, इसी वजह से यहां रहने वाले चोर गदहे को मारकर उसका खून पीते थे।
तेजी से कम हो रही आबादी…
2019 में हुए शर्वे के मुताबिक आंध्र प्रदेश में गधों की आबादी केवल 5 हजार रह गई थी। उसी साल प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र में गधों की संख्या तेजी से कम होने के चलते वहां के स्टेट एनीमल हज्बेंड्री डिपार्टमेंट ने इसे रोकने के लिए सभी कलेक्टरों को सर्कुलर जारी किया था।
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