जिसे बताया था मां, बजट में उसे ही कैसे भूल गए पीएम !
वाराणसी — 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से एक ऐसा संदेश दिया था, जिसने सब को यह विश्वास दिलाया था कि अब मां गंगा यह बेटा अपनी मां के लिए कुछ करेगा। लेकिन अब वह उम्मीद भी धूमिल पड़ती दिख रही है।
दरअसल पीएम नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र दाखिल करने के बाद कहा था कि मैं यहां आया नहीं, मुझे गंगा मां ने बुलाया है। लेकिन वाराणसी के लोग कह रहे हैं कि आज वही ‘गंगा मां’ मोदी सरकार के बजट से गायब है।
वहीं वाराणसी में लोग पूछ रहे हैं कि जिस मां ने नरेंद्र मोदी को वाराणसी बुलाया था, उसे वे कैसे भूल गए। केंद्र में सत्ता पाने के बाद ‘नमामि गंगे’ योजना की शुरुआत करके प्रधानमंत्री मोदी ने गंगा सफाई के लिए एक मैसेज दिया था। 20,000 करोड़ रुपए की लागत से नमामि गंगे योजना की शुरुआत की गई और गंगा की स्वच्छता और निर्मलता को वापस लाने का बीजेपी सरकार ने संकल्प दुहराया था।
CAG की रिपोर्ट में हुआ खुलाशा, ‘नमामि गंगे’ एक शिगुफा भर ही था
इतना ही नहीं, गंगा सफाई पर विशेष ध्यान देने के लिए एक गंगा मंत्रालय भी बना, लेकिन ये सारी कवायद सिर्फ कागजों में सिमट कर रह गई। हालात ये हैं कि ना गंगा साफ हुई, ना ही निर्मल। लोगों को उम्मीद थी कि बजट में गंगा के लिए कुछ नया होगा। वह भी नहीं हो सका।
गंगा को निर्मल बनाने के लिए लंबे वक्त से संघर्ष करने वाले स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती का कहना है कि इस सरकार में गंगा के लिए प्रयास हुआ है। सरकार के पास गंगा के लिए चित भी है और वित्त भी है लेकिन कोई प्लानिंग नहीं है। इसलिए बजट में वित्त मंत्री ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।
वहीं शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेस्वरानंद सरस्वती का कहना है कि उम्मीद बहुत थी कि बजट में गंगा के नाम पर कुछ मिलेगा। गंगा का उद्धार होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि सिर्फ डायलॉग बोलने से कुछ नही होता। मां के लिए हृदय से प्रयास करना पड़ता है। आज गंगा बांधों में बंधी है और लोग रुपए खर्च कर गंगा को साफ करने में लगे हैं। बांध खोल दो, गंगा खुद साफ हो जाएगी।
बैठ रहे हैं घाट, घट रहा है पानी
2017 में नमामि गंगे योजना के तहत वाराणसी से बलिया तक 269 से ज्यादा घाटों के सुंदरीकरण के लिए भी बजट पास हो चुका है लेकिन काम अबतक परवान नहीं चढ़ सका। इसका असर काशी के तमाम घाटों पर देखने को मिल रहा है और घाट बैठ रहे हैं। इसी योजना के नाम पर प्रस्तावित 150 करोड़ की लागत वाले 50 एमएलडी के छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम भी अधर में है। इस लापरवाही के कारण गंगा के हालात दिनों-दिन बिगड़ते जा रहे हैं।
जानकार बताते हैं कि आईआईटी, बीएचयू, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समेत अन्य एजेंसी के रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि गंगा घाटों से दूर हो चुकी है और गंगा का पानी अंजूलि में लेने लायक भी नहीं है।अकेले वाराणसी की गंगा में छोटे-बड़े लगभग 40 से ज्यादा नालों का पानी आकर मिलता है, जो उसे लगातार जहरीला बना रहे हैं। गंगा में दो करोड़ नब्बे लाख लीटर कचरा रोज गिरता है और इन पर अब तक सरकार की योजना का कोई असर होता नहीं दिख रहा।
और प्रदूषित होती जा रही गंगा
गंगा को निर्मल करने के प्रयास भी काफी लंबे वक्त से चल रहे हैं। 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 462 करोड़ रुपए की लागत वाले गंगा एक्शन प्लान को मंजूरी दी थी, जिसका मुख्य उद्देश्य नदी का प्रदूषण रोकना और इसके पानी की गुणवत्ता को बेहतर बनाना था लेकिन गंगा का प्रदूषण रुकने की जगह दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। हाल ये है कि आज गंगा में प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सुरक्षित बताए गए प्रदूषण के स्तर से तीन हजार गुना अधिक है।
वर्ष 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया था। इसके बावजूद गंगा का प्रदूषण घटने की बजाए लगातार बढ़ता ही गया है। मोदी सरकार ने 20 हजार करोड़ सिर्फ गंगा सफाई के लिए घोषित कर दिए लेकिन इन चार वर्षों में गंगा को लेकर कोई उल्लेखनीय काम नहीं हो सका।
(रिपोर्ट-बृजेन्द्र बी यादव)