Lockdown ने बजाया बैण्ड वालों का बाजा
बलिया–देश में लागू Lockdown ने जहा हर किसी की कमर तोड़ दी है वही लाक डाउन की मार सबसे ज्यादा बैण्ड बाजा पार्टियों पर पड़ी है| जहा एक तरफ बैण्ड वालो कि सारी बुकिंग कैंसिल हो गयी है, वही लाकडाउन की अनिश्च्तिता ने उनके सामने भूखमरी के हालत पैदा कर दिए है| आर्थिक तंगी और बेरोजगारी से जूझते बैण्ड पार्टी के संचालक सरकार से मदद कि गुहार लगा रहे है|
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बाजा न बजे तो शादी कैसी… बाजा न बजे तो नेता जी का स्वागत कैसा… बाजा न बजे तो मांगलिक कार्यक्रम कैसा और बाजा न बजे तो अंतिम सांसो की विदाई कैसी| बैण्ड बाजे की धुन पर नाचने वाली दुनिया कोरोना के कहर में खामोश हो चुकी है और शहनाइयों से निकलने वाले सुर बदहाली और बेरोजगारी का दर्द भरा तराना गा रहे है| अब न गलियों से बारात गुजरती है और ना बैण्ड बाजे की धुन सुनाई देती है| उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद के पक्काकोट गाँव के मनान खां पेशे से बैण्ड पार्टी के संचालक है|
Lockdown के दौरान शादियाँ कैंसल हुयी तो मनान खां की सारी बुकिंग भी कैंसल हो गयी और अब मनान खां के सामने सबसे बड़ी मुश्किल बुकिंग का एडवांस पैसा लौटने का है जब कि एडवांस का सारा पैसा लाक डाउन के बीच अपने साज बजाने वाले कलाकारों को दे दिया जो बैण्ड पार्टी बंद होने के वजह से अपने गाँव लौट गए है|
Lockdown में मनान खां की बैण्ड पार्टी बंद होने का सबसे ज्यादा असर उनके परिवार पर पड़ा है| मनान खां की बीबी शकीला का कहना है कि घर में चूल्हा कैसे जलेगा ये समझ में नही आता, ईद में सेवईया जरुर बनी पर मिठास कम थी ये बताते बताते उसकी आंखे नम हो गयी कि जवान बेटियों कि शादी अब कैसे होगी और आँखों कि पुतलियो पर टिके हुए आंशू जिम्मेदारी की बोझ से निचे गिर गए|
बलिया में बैण्ड पार्टी चलाने वाले, एक साल में 30 से 40 बुकिंग करते है| एक बैण्ड पार्टी में 20 से 22 सदस्य होते है जो अलग-अलग साज बजाते है| पश्चिम बंगाल से लेकर बिहार और उत्तर प्रदेश के कई जनपदों से साज बजाने वाले Lockdown में अपने घरो को लौट गए जिसमे बड़ी संख्या में उन किन्नरों की भी है जो बैण्ड पार्टियों में डांस करते है| बैण्ड संचालक नूर नैन का कहना है कि कोरोना और लाक डाउन से उनका व्यवसाय चौपट हो चूका है और कोई उनकी मदद करने के लिए आगे नही आ रहा है|
(रिपोर्ट- मनोज चतुर्वेदी, बलिया)