मेला रामनगरिया में इस बार निराश हैं सिल-बट्टा कारोबारी, ये है वजह…

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फर्रुखाबाद–पुराने समय में खाना पकाने के लिए मसाले पीसने के लिए ओखली-मूसल और सिल बट्टा का इस्तेमाल किया करते थे। बेशक इन चीजों में मसाला पीसने में मेहनत और समय दोनों खर्च होते थे लेकिन खाने का जो स्वाद आता था, यब बात आपके परिजन अच्छी तरह जानते होंगे। 

आजकल लोगों के पास समय नहीं है इसलिए अब इस काम के लिए ग्राइंडर, ब्लेंडर और मिक्सर आदि का इस्तेमाल होता है। जिससे सिल-बट्टा का कारोबार करने वाले कारीगरों की रोजी-रोटी पर खासा असर डाला है| एक जमाने में मेला रामनगरिया से लोग सिल-बट्टा लेंने के लिए साल भर इंतजार करते थे| लेकिन आज इस कारोबार को तो जंग लगी ही है साथ ही आम आदमी की रसोई से सिल-बट्टा से पीसे गये मसालों का स्वाद गायब सा हो गया है|

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मेला रामनगरिया लगभग सज गया है| हजारों की संख्या में कल्पवासी भी जुट गये है| मेला का शुभारम्भ भी जल्द होने वाला है|मेले में दुकान लगाने वाले कारोबारी अपनी दुकानें भी सजाने लगे है| उन्ही में से आधा दर्जन दुकाने सिल-बट्टा बनाने वाली है| जो पत्थर को काटकर उसे सिल-बट्टे का रूप दे रहे है| यह कारोबारी बीते कई दशकों से सिल-बट्टा की दुकानें लगाकर कारोबार करते आये है| लेकिन आज उनके सामने निराशा है| घरों के रसोईघर से सिल-बट्टा की जगह मिक्सी ने ले ली है| कुछ मिनटों में ही सब्जी के लिए मसाला एक बटन दबाकर पीसा जा सकता है|

रामनगरिया में सिल-बट्टे की दुकान लगाये कारीगर अमित कुमार ने बताया की उसके परिवार में पुश्तैनी यह कारोबार होता चला आ रहा है| इस समय सिल सफेद या लाल पत्थर की 150 से 200 रूपये में इसके साथ ही साथ बड़ी सिल चार सौ से 500 रुपये में उपलब्ध है| अमित ने  बताया कि पिछले वर्षों में कारोबार में भारी गिरावट आयी है| रामनगरिया में सिल-बट्टा बना रहे कारोबारी कुलदीप ने बताया की आगरा और इलाहाबाद से वह सिल खरीदते है| लेकिन सरकार इस बिलुप्त होते कारोबार पर भी 15 प्रतिशत जीएसटी चार्ज करती है| जिससे कारीगर काफी आहत है|

(रिपोर्ट- दिलीप कटियार, फर्रुखाबाद ) 

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