सवर्णों को दस% आरक्षण:पैंट गीली होने पर आरक्षण रूपी डाइपर पहनने से क्या लाभ होगा ?

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*लखनऊ से तौसीफ़ क़ुरैशी*

लखनऊ — लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में महा सियासी संग्राम देखने को मिल रहा है कोई कुछ सियासी सगूफा छोड रहा है तो कोई कुछ कहकर एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगा है। यह बात अपनी जगह है कि केन्द्र की मोदी की भाजपा सरकार ने आनन-फानन में जो अपने तरकश से तीर चलाकर विपक्ष को घायल करने का काम किया था लेकिन विपक्ष ने सत्ता पक्ष के इस मास्टर स्ट्रोक को उसी की तरह बिना तैयारी के जवाब देकर लहु लुहान कर दिया है उसे ये कहने का मौक़ा नही दिया कि हम तो स्वर्णों के लिए कुछ करना चाहते थे परन्तु विपक्ष ने करने ही नही दिया । विपक्ष ने सरकार के ग़लत तरीक़े का विरोध करते हुए इस मुद्दे पर सरकार को आगे बढ़ने दिया।

क्योंकि सरकार और विपक्ष दोनों को यह मालूम है कि यह ग़लत है परन्तु स्वर्णों में यह संदेश जाए कि हम आपके लिए कुछ करना चाहते है और विपक्ष इस आरोप से बचता दिखा कि सरकार तो करना चाहती थी पर विपक्ष आडे आ गया।यह बात अपनी जगह है कि आर्थिक रूप से कमज़ोर स्वर्णों को आरक्षण का लाभ होगा यह तो मुश्किल लग रहा है हाँ ये तय लग रहा है कि इस आरक्षण के चक्कर में में आयकर विभाग के चक्कर ज़रूर काटने पड़ सकते है यह तो इस आरक्षण का सच है जो जल्द समझ में आ जाएगा दूसरा बिना तैयारी के ये संविधान संशोधन किया गया है जिसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई या सरकार की तरफ़ से ही किसी को सुप्रीम कोर्ट भेज दिया गया यह तो बाद में खुलकर सामने आ जाएगा।

अब हम बात करते है जिसे मोदी की सरकार का मास्टर स्ट्रोक कह कर गोदी मीडिया पिला पड़ा है उसी मास्टर स्ट्रोक की समीक्षा करते है पिछले काफ़ी दिनों से स्वर्णों के दिलों में दलितों व पिछड़ो को मिल रहे आरक्षण को लेकर तरह-तरह की शंकाएँ है कि इससे स्वर्णों का हक़ मारा जा रहा है इससे प्रतिभाएँ दब रही है कम नंबर वाला बाज़ी मार ले रहा है और ज़्यादा नंबर वाला बाहर रह जाता है हो सकता है यह सही भी हो लेकिन स्वर्ण अपनी मानसिकता को भी बदलने को तैयार नही है। आरक्षण से पहले आप अगर दलितों के साथ पिछड़ो के साथ आपसी भाई चारा रखते तो शायद इसकी ज़रूरत ही नही पड़ती।

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इससे पहले की सरकारों ने भी दो बार यह प्रयास कर चुकी है कि स्वर्णों को आरक्षण दिया जा सके लेकिन वह नाकाम रही थी वीपी सिंह व नरसिंह राव सरकार। अब सवाल यह उठता है कि क्या मोदी की भाजपा को इसका चुनाव में लाभ होगा या यह भी चाल सरकार की वापसी कराने में नाकाम ही रहेगी। ऐसे कितने राज्य है जहाँ स्वर्णों की संख्या इतनी है जो सरकार को सत्ता की दहलीज़ पर वापिस लाकर खड़ी कर देगा क्या स्वर्णों में ऐसी जातियाँ है जो मोदी की भाजपा को पहले वोट नही देती थी लेकिन आरक्षण के बाद वह मोदी की भाजपा के साथ आ जाएगी और उनकी संख्या किस राज्य में कितनी है।

अगर हम बात करे देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की जहाँ से प्रधानमंत्री बनने का रास्ता तय होता यहाँ स्वर्णों की संख्या मात्र पच्चीस % मानी जाती है इसी पच्चीस में मुसलमान भी है जो किसी क़ीमत पर मोदी की भाजपा को पसंद नही करता वोट देना तो दूर की बात है यही हाल अन्य प्रदेश में भी है।असम में 35% , कर्नाटका में 19% , केरल में 30% महाराष्ट्र में 30% , ओड़िसा में 20% ,पश्चिम बंगाल में 48% , पंजाब में 48% बिहार में 18% मध्य प्रदेश में 22%, झारखण्ड में 20% ,राजस्थान में 23%,हरियाणा में  40% , छत्तीसगढ़ में 12% ,व नई दिल्ली में सबसे ज़्यादा 50% है हिन्दू की ज़्यादातर स्वर्ण जातियों का वोट भाजपा को ही जाता है और हिन्दू की स्वर्णों की जातियों में जो भाजपा को पसंद नही करता वह किसी भी सूरत में भाजपा को नही जाएगा चाहे वह आरक्षण नही कुछ भी दे दे।

 वह उसको देशहित में नही मानता तो क्या इस हालत में मोदी की भाजपा को कोई लाभ होने जा रहा ऐसा तो बिलकुल नही लगता बाक़ी चुनावों के परिणाम बता देंगे कि मोदी की भाजपा वापसी हुई या चू-चू का मुरब्बा बन गई।हा यह तो हो सकता है जो साम्प्रदायिक वोटर है वह भी मोदी की सरकार से इस बात को लेकर नाराज़ है कि हमारे मोदी की सरकार न दो करोड़ नौकरियाँ पैदा कर पायी जिससे बेरोज़गारों को रोज़गार मिल पाता और न ही राम मन्दिर पर कोई काम कर पायी न ही धारा 370 को हटा पायी न ही पाकिस्तान से ऑंख में ऑंख डालकर बात कर पायी व चीन को भी सबक़ नही सिका पायी महँगाई की मार तो फ़्री में मिल गई इन सब मुद्दों को लेकर साम्प्रदायिक वोटर निराशाजनक हालत में है।शायद उसको ऑक्सिजन दे पाये।

देश के ऐसे भी राज्य है जहाँ मोदी की भाजपा का बहुत कम ही जनाधार है बल्कि न के बराबर ही माना जाता है जैसे केरल , तमिलनाडु , आन्ध्र प्रदेश ,और तेलंगाना ऐसे प्रदेश है जहाँ मोदी की भाजपा सरकार कुछ भी कर ले कोई फ़र्क़ नही पड़ने वाला है इन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का बोलबाला रहता है या कांग्रेस को माना जाता है कि वह हर जगह है।

मोदी के आरक्षण वाले क़दम को जो मास्टर स्ट्रोक बता रहे है वो लोग सरासर बेमानी कर रहे।हाँ यह बात सही है की जहाँ पिछले आम चुनाव में मोदी की भाजपा कमज़ोर थी जैसे पश्चिमी बंगाल और ओड़िसा यहाँ कहा जा सकता है कि शायद यहाँ कुछ कर जाए वो भी इतने बड़े पैमाने पर नही कि सरकार बनाने का खेल बन जाए। कुल मिलाकर मोदी की भाजपा के द्वारा दस % आर्थिक आधार पर आरक्षण के मास्टर स्ट्रोक का कोई ख़ास लाभ होने नही जा रहा है यही कहा जा रहा है कि पैंट गीली होने पर आरक्षण रूपी डाइपर पहनने से काम चलने वाला नही है हाँ गोदी मीडिया या गप्पू मोदी की भाजपा के नेता जनता का ध्यान बाँटने का काम ज़रूर कर रहे है अब देखना यह है कि वह जनता का ध्यान मुद्दों से भटकाने में कामयाब होते है या नही।

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