योगी राज में टूटा मुलायम कुनबे का तिलिस्म, 30 साल बाद BJP का कब्जा

बैंक की 323 शाखाओं में से 293 पर बीजेपी ने फहराया परचम..

0 888

उत्तर प्रदेश में तीन दशकों से चले आ रहे मुलायम कुनबे का तिलिस्म आखिरकर टूट गया. दरअसल समाजवादी कुनबे के बीच पिछले चार साल से चली आ रही कलह और BJP की रणनीति से करीब 30 सालों से उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक में चला आ रहा मुलायम सिंह यादव परिवार का वर्चस्व खत्म हो गया.

ये भी पढ़ें..सीएमएस का भद्दी-भद्दी गालियां देते ऑडियो वायरल, पीडित ने की शिकायत

293 सीटों पर बीजेपी का कब्जा

दरअसल वर्ष 1999 में बीजेपी के शासनकाल को छोड़ दें तो 1991 से लेकर अप्रैल 2020 तक इस बैंक पर मुलायम सिंह यादव परिवार का कब्जा रहा या प्रशासक नियुक्त हुए. ऐसा पहली बार है जब बैंक की 323 शाखाओं में से मात्र 19 पर ही विपक्ष काबिज हो सका. कुल दस जगह चुनाव निरस्त और 11 पर निर्वाचन प्रक्रिया नहीं हो सकी. यानी 293 स्थानों पर बीजेपी का परचम फहराया. हालांकि सहकारिता की सियासत में सिरमौर माने जाने वाले शिवपाल यादव व उनकी पत्नी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहीं.

बता दें कि यूपी सहकारी ग्राम विकास बैंक के सभापति और उपसभापति पद पर अब बीजेपी का.कब्जा हो गया है. लखनऊ सहकारी ग्राम्य विकास बैंक के सभापति पद पर संतराज यादव निर्विरोध चुने गए हैं. केपी मलिक भी उपसभापति पद के लिए निर्विरोध चुने गए हैं. दोनों पदों पर बीजेपी का कब्जा हुआ. अब तक शिवपाल यादव सहकारी ग्राम्य विकास बैक के सभापति थे.

भाजपा ने इन सीटों पर किया कब्जा
Related News
1 of 1,504

बैंक की स्थानीय प्रबंध समितियों व सामान्य सभा के चुनाव में कानपुर व ब्रज क्षेत्र में ही विपक्ष को कुछ राहत मिली, अन्यथा पश्चिम के 59 में से 55, अवध के 65 में 63, काशी के 38 में से 33 तथा गोरखपुर के 34 में 30 स्थानों पर भाजपाई काबिज हो गए.

कानपुर क्षेत्र में बीजेपी को 45 में से 34 और ब्रज में 82 में से 78 क्षेत्र में जीत मिली. मथुरा के गोवर्धन व नौझील में नामांकन ही नहीं हो सके, जबकि कुशीनगर की पडरौना, बांदा की बबेरू, फतेहपुर की बिंदकी खागा, सोनभद्र की राबर्टसगंज व कानपुर की घाटमपुर व चौबेपुर में चुनाव निरस्त हो गए.

1991 में हुई थी मुलायम कुनबे की एंट्री

इस बैंक का इतिहास देखें तो वर्ष 1960 में पहले सभापति जगन सिंह रावत निर्वाचित हुए.वर्ष 1991 में मुलायम सिंह यादव परिवार की एंट्री हुई. हाकिम सिंह करीब तीन माह के लिए सभापति बने और 1994 में शिवपाल यादव सभापति बने.

ये भी पढ़ें..बड़ा झटका, IAS से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों तक, वेतन में होगी कटौती!

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं। )

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

Comments
Loading...