अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस स्पेशल: इस ‘नारी अदालत’ में 16 महिला जज करती हैं फैसले
सीतापुर–सीतापुर में महिलाओ ने खुद की अदालत बनाई है. पुलिस से न्याय ना मिल पाने के कारण महिलाओ ने ये कदम उठाया है. इस अदालत में 16 महिलाये है, जो बड़ी ही ज़िम्मेदारी से जज कि तरह फैसला सुनाती है.
सीतापुर की मिस्रिख और पिसवा तहसील में यह अदालत पिछले 21 सालो से लगातार चल रही है. इस अदालत में ख़ास कर महिला उत्पीडन, दहेज़ प्रथा, बाल विवाह, घरेलु हिंसा से जुड़े मुद्दों को आपसी विचार – विमर्श और दोनों पक्षों की सहमति पर निपटाने का प्रयास किया जाता है. महिलाओ की ये अदालत इतनी लोकप्रिय हो गयी है की अब दूसरे जिलो से भी लोग इस अदालत में पूरे विश्वास के साथ अपने बिखरते हुए रिश्तो को फिर से जोड़ने के लिए आते है. अब इस अदालत को महिला नाम की समाख्या का भी सहयोग मिलना शुरू हो गया है. पुलिस अधिकारियो का मानना है की महिलाओ की इस अदालत की वजह से घरेलू हिंसाओं में अपराधो में काफी गिरावट आयी है. साथ ही वो ये भी मानते है की ग्रामीण महिलाओ द्वारा उठाये गए इस कदम को समाज के लिए एक बेहतर कदम है.
ग्रामीण महिलाओ ने नारी अदालत की शुरुवात ज़िले की दो तहसीलो से की. इस अदालत में खास कर महिला हितो को ध्यान में रक्खा जाता है. नारी अदालत 15 और 27 को तहसील मिश्रिख व पिसावा में लगायी जाती है. इस अदालत में गाँव की ही 16-16महिलाओ को जज बनाया गया है. जो बड़ी ही ज़िम्मेदारी से फैसला सुनाती है. इस अदालत को इस गरज़ से लागो किया गया है, ताकि महिलाओ को थाने के चककर न लगाने पड़े. और उन्हें पुलिसिया उत्पीड़न से भी छुटकारा मिल सके. इस अदालत में आने वाले पीड़ित पक्ष से 21 rs. पंजीकरण शुल्क लिया जाता है. जिससे दुसरे पक्ष को रजिस्टरी कर उसको नारी अदालत में बुलवाया जाता है. इसके बाद भी यदि दूसरा पक्ष अदालत में नहीं आता है, तो अदालत की कुछ जज गाँव जाकर दुसरे पक्ष से वार्ता करती है. और मामले को निपटाने के लिए उसे अदालत में लेकर आती है. इसके पक्षो को 16 जजो के सामने बड़ी ही गम्भीरता से सुना जाता है. और निष्पक्ष फैसला सुनाया जाता है. बाद में सहमति होने पर 100 rs के स्टंप पेपर पर शेरते लिखकर दोनों पक्षों के हस्ताक्षर कराये जाते है. इस पेपर पर गवाहो के भी साइन कराये जाते है. उसके बाद दोनों पक्ष ख़ुशी से बगैर किसी वाद विवाद के अपने घर जाते है.
महिला अदालत में बनायीं गयी सभी महिला जजो को काननों की जानकारी भी दी जाती है. उन्हें दहेज़ एक्ट, फोटोग्राफी, तथा महिलाओ से जुड़े अन्य मामलों का प्रक्षिक्षण समय – समय पर दिया कराया जा रहा है. इन महिलाओ को अन्य जिलो में भी भेजा जा रहा है ताकि वे और जानकारिया हासिल कर सके. अब इस महिला अदालत में थाने और तहसीलों से जुड़े मामले भी आने लगे है. इस नारी अदालत को अब महिला समाख्या नाम के एक एन.जी.ओ. का भी पूरा सहयोग मिल रहा है.
सीतापुर जिले में नारी अदालत ने जिस तरह से धरेलू हिंसा, बाल विवाह, दहेज़ एक्ट जैसे गम्भीर मामलो को अहम् ज़िम्मेदारी समझकर निपटाया, वो वाकई में एक सराहनीय कदम है. साथ ही देश में भ्रष्ट क़ानून व्यवस्था के कारण महिलाओ पर हो रहे पुलिसिया उत्पीड़न पर एक ज़ोरदार तमाचा है.
(रिपोर्ट- सुमित बाजपेयी, सीतापुर )